Sunday, 12 May 2019

ग़ज़ल, "इजहार धीरे-धीरे" (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")


इजहार धीरे-धीरे

करते है प्रेम का वो इजहार धीरे-धीरे

 इंकार धीरे धीरे इकरार धीरे-धीरे

 कहते हैं वो की राधे कुछ लिख नहीं सकेगी

 लेकिन दुआ वो करते हर बार धीरे-धीरे

 मर्ज वो लगा है बचना नहीं है मुमकिन

 देते दवा भी वो तो हर बार धीरे-धीरे

 जीने को इस धरा पर विष सारे पी रहे हैं

हर बार वो पिलाते मधुधार धीरे-धीरे 

आते हैं पास अक्सर ख्वाबों में रात को वो

 आकर जगा रहे हैं हर बार धीरे-धीरे

 करके इशारे अक्सर वो बात अपनी कहते 

दिल में उतर रहे हैं हर बार धीरे-धीरे 
कुछ भी नही है रिश्ता राधे का उनसे कोई 
पर बन रहे हैं अब वो सरकार धीरे-धीरे 

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