चेतक
कहे राणा महाराणा तुम्हें तो ये जगत सारा तुम्हें चेतक सदा लगता था अपने प्राण से प्यारा बैठते जब भी थे इस पर हवा से बात करता था जब भी डोर खींची थी उछलने को मचलता था तुम्हारे साथ में राणा ये चेतक खूब जचता था तुम्हारे रण की नीति को सदा चेतक ही रचता था रोटी घास की खाई बिताई रात जंगल में मगर चेतक के संग रहकर रहे हरदम ही मंगल में जगतसिरमौर थे तुम तो तुम्हारा अश्व था तारा धरा से बात करता था दिखाता था गगन न्यारा |
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