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Friday, 17 May 2019

दोहे, " काफल " ( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")

काफल
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काफल अब पकने लगे, आया चैत बैसाख।
 काफल पाको कह रही, बैठी चिड़िया शाख।।

 काफल छोटा है मगर, लेकिन है रसदार।
 खाते इसको है सभी, नमक लगा हर बार।।

 दाना दाना खा रहे, जो भी पहली बार।
 फिर वह मुंह में डालते, दानों का अंबार।।

 काफल खाकर पीजिए, पानी एक गिलास।
 नमक तेल से हो रहा, स्वाद बहुत ही खास।।

 घास काटने जा रही, जंगल में जो नार।
 हसिया लेकर हाथ में, लगा रही है धार।।

 लाल लाल है दिख रहे, काफल चारों ओर।
 बच्चे लेने जा रहे, जग कर इनको भोर।।

 केवल दो पल के लिए, काफल में है जान।
 सिकुड़ गए गर ये तभी, बासी इनको जान।।