तक्षशिला में आगतक्षशिला में आग लगी, महल हो गया खाक।चौ मंजिल से कूदते, बच्चे बन बेबाक।।धूं धूं करके जल उठा, महल मंजिला चार।बच्चों पर प्रभु हो गया, कैसा अत्याचार।।प्राणों के हित कूदते, एक एक के बाद।लोग सभी हैं देखते, बिना करे संवाद।।जो ऊपर से कूद गए, उनने झेली पीर।लेकिन जो अंदर रहे, उनका जला शरीर।।ह्रदय विदारक दृश्य था, देख रहे थे लोग।बचा नहीं कोई वहाँ, कैसा था संजोग।।पढ़ने को आए सभी, अपनी माँ के लाल।मौत आ गई बीच में, बनी सभी का काल।।बच्चों ऐसे समय में, धरो सदा ही धीर।जीवन हम उतना जिएँ, जितनी है तकदीर।।जीवन में सब कीजिए, सबसे शुभ व्यवहार।सदा ही सबको कीजिए, आप ह्रदय से प्यार।।
Tuesday, 28 May 2019
दोहे "तक्षशिला में आग " ( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")
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