श्रमिक
मेरी बातों से बनी, तेरी है पहचान।
गीत गजल कविताओं से, दो शब्दों को मान।।
दिन की तपती धूप में, काम करें मजदूर।
फिर भी वह भूखे रहे, कितने हैं मजबूर।।
कलम डूबा कर खून में, लिखते श्रम की बात।
श्रमिक रहे इस जगत में, हरदम ही निष्पाप।।
जुल्म किसी पर डालकर, मत करना फरियाद।
शुभ कर्मों से ही सभी, जग में रहते याद।।
दुश्मन करता सामने, मीठी मीठी बात।
छुरा खोपकर पीठ में, देता है आघात।।
यही निशानी वीर की,रहता घर से दूर।
तन करके रहता खड़ा जैसे हो मजदूर।।
बेटी होती है सदा, देवी का ही अंश।
उससे ही आगे बढ़े, दूध स्वरूपा वंश।।
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Wednesday, 1 May 2019
दोहे, " श्रमिक" (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")
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