Wednesday, 15 May 2019

बाल कविता, "बढ़ता ताप " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल ")


बढ़ता ताप 
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सूरज का जब बढ़ता ताप 
तब पानी बन जाता भाप 
उड़ कर के आकाश में जाता 
कोई उसको देख न पता 
सूखी नदिया , छरने सूखे 
चेहरे सबके हो गए रूखे 
नीम्बू कि अब आई बहार 
पीलो पानी बार बार 
तेज हो रही है अब धुप 
बिगड़ रहा है सबका रूप 
बच्चों घर के अन्दर आओ 
घर में तुम शीतलता पाओ   

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (16-05-2019) को "डूब रही है नाव" (चर्चा अंक- 3337) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर सखी
    सादर

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