राहों में पहले उनसे मुलाकात होती है
फिर चुपके चुपके से कुछ बात होती है
मिलना बिछड़ना उनका कोई तरकीब है
जिसको भी दूर देखो वो ही करीब है
होता है दुश्मन इन का सारा जमाना
बहानों से इनको तो मिलने को है आना
दोनों ही आपस में रब और रकीब है
जिसको भी दूर देखो वो ही
करीब है
बनाता है जोड़ा तो ईश्वर सभी का
नहीं देखता फर्क
को अजनबी का
मिले जिनको चाहत वही खुशनसीब है
जिसको भी दूर देखो वो ही
करीब है
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (06-05-2019) को "आग बरसती आसमान से" (चर्चा अंक-3327) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'