विषय - सागर
विधा - चौपाई छन्द
सागर होता कितना गहरा
लगा नहीं सकते हैं पहरा
जीव जंतु इसमें रहते हैं
गर्मी शीत सभी सहते हैं||
चलो देखते हैं परछाई
मम्मी आई ताई आई
पानी इसका कभी न ठहरा
लगा नहीं सकते हैं पहरा।।2।।
ज्यों जल बिन है मीन पियासी
त्यों मोहन बिन हैं बृजवासी
तरा सदा अंधा अरु बहरा
लगा नहीं सकते हैं पहरा।।3।।
ज्यों राधा बिन रहे साँवरा
भटके बनकर सदा बाँवरा।।
सागर होता कितना गहरा
लगा नहीं है इस पर मुहरा।।4।।
सागर में लहरों को पाया
मछुआरे ने जाल बिछाया
सुबह सवेरे छाया कुहरा
सागर होता कितना गहरा।।5।।
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Sunday 15 March 2020
चौपाई छन्द , "सागर " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),
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