विषय भोर
विधा चौपाई छंद
भोर भई पनघट पर जाओ
जल में गगरी सदा डुबाओ
अधजल गगरी छलकत जाती
गोरी आधी घर पहुँचाती
सखियाँ करती हँसी ठिठोली
खेल रही बनकर हमजोली
देखो नाच रही है राधा
खुश होकर दुख होता आधा
सूर्य देवता भी आते हैं
सबको ही तो वो भाते हैं
काम समय पर जो है करते
उनके दुख भी भगवन हरते
गगरी भर कर घर को जाती
दिनभर वो पनघट पर आती
कठिन गाँव का जीना इतना
तुम बतलादो होता कितना
अब तो जल भी घर घर आया
पढ़ना लिखना सबको भाया
शोर करे मिल चिड़िया सारी
भोर हुई जागो नर नारी
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Friday, 13 March 2020
चौपाई छंद ," भोर " (राधा तिवारी " राधेगोपाल " ),
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