Thursday, 26 March 2020

कुण्डलियाँ " माँ -बेटी " (राधा तिवारी " राधेगोपाल " ),

विधा-मुक्त छंद

 माँ -बेटी के साथ में,करती हँस के बात।
बेटी को वो दे रही,जीवन की सौगात।।
जीवन की सौगात, ज़िन्दगी होती भारी।
पर बिटिया  तो लगती हर माता को प्यारी।
कह राधे गोपाल,गोद में माँ के लेटी
हँस कर करती बात , सदा ही माँ अरू बेटी 

: माँ -बेटी के साथ में,करती हँस के बात।
शीत मगर है दे रही, बेटी को आघात।
 बेटी को आघात, मिली  कैसी लाचारी।
 निर्धन सेके ताप, बचाए बिटिया प्यारी।।
कह राधे गोपाल, पिता के सर है पेटी
आग जलाकर खेल ,रही निर्धन की बेटी।


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