*मनोदशा*
*लेखिका राधा तिवारी "राधेगोपाल"*
नहीं पापा नहीं!
आप ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकते।
नहीं !
माना कि आप एक अच्छे फोटोग्राफर है, माना कि आपको पुरस्कृत किया जा चुका है अच्छी फोटो खींचने के लिए मगर नहीं,नहीं पापा।
ऐसा बोलते हुए चिराग ने पापा के हाथ से कैमरा छीन लिया।पापा हतप्रभ थे आखिर मेरे बेटे को क्या हो गया जो कल तक कहता था कि आप अच्छी तस्वीरें लेते हैं और आज वही मेरे हाथ से कैमरा छीन रहा।
वे सोफा में बैठ गए अपनी पत्नी से पानी मंगवाया,पानी पीया फिर चिराग के सर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने प्रेम पूर्वक इसका कारण पूछा।
चिराग बोला पापा और समय की बात अलग थी अभी कोरोना महामारी के कारण लोकडाउन चल रहा है।लोग बाहर अपने साथियों की अन्न दे कर मदद कर रहे हैं ।यदि हम हाथ फैलाते हुए उन लोगों की तस्वीर को अपने कैमरे में कैद करेंगे तो उन गरीबों को कैसा लगेगा। जब वह तस्वीरें लोगों तक पहुंचेगी हो सकता है कि पापा उसमें हम भी हो या हमारे कोई दोस्त हो और वह हंसी के पात्र ना बन जाए। प्लीज पापा।
मैंने देखा कि चिराग की आँखों में आँसू थे।मैं नि:शब्द था एक छोटे बच्चे की मनोदशा को देखकर और मैं चुपचाप अपना कैमरा ऐसे ही छोड़ कर बाहर की ओर चला गया और मन में प्रण कर लिया कि मैं मदद करने वालों की तस्वीर तो लुँगा मगर जिनकी मदद की जा रही है उनको कैमरे में कैद कदापि नहीं करूंगा। आखिर वह भी तो हमारे साथ के ही हैं, हम जैसे ही हैं।
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Friday, 22 May 2020
लघु कथा , *मनोदशा* " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),
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