" मजदूरी "
जिसका टपके रोज पसीना
उसको ही आता है जीना
चट्टानों को तोड़ तोड़ कर
नदियों का रुख मोड़ मोड़ कर
स्वेद बहा जब घर पर आए
तब घर में सब रोटी पाए
सेवा सबकी ही करते हैं
दुखड़े सबके ही हरते हैं
इनके बिन सब काम है रुकते
इनके आगे हम सब झुकते
बना रहे हैं बड़ी हवेली
जो लगती बस हमें पहेली
दर्द कभी भी नहीं बताते
अपना दुखड़ा नहीं सुनाते
नैनो के सब अश्क छुपाते
दुख अपना वह नहीं बताते
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मजदूर दिवस को सार्थक करती सुन्दर प्रस्तुति।
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