Sunday 29 July 2018

दोहे " झड़ी लगी बरसात की" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


 झड़ी लगी बरसात की

उमड़-घुमड़ कर आ रहे, नभ में बादल राज ।
फसलों को जीवन मिला ,खुश हो रहा समाज।।
 वर्षा के जल से भरे ,खेत और तालाब।
 बचा लीजिए नीर से, मील और असबाब।।

हरियाली होती सदा, धरती का परिधान ।
बारिश के जलपान से, खुश होते हैं धान।।

 आज धरा को हो रहा, सुंदर सा आभास।
 बादल अंबर के सभी, तोड़ चुके संन्यास।।

 झड़ी लगी बरसात की, छाता रक्खो पास।
 दुख में जो भी साथ दे, समझो उसको खास ।।

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