उमड़-घुमड़ कर आ रहे,
नभ में बादल राज ।
बचा लीजिए नीर से, मील और असबाब।।
हरियाली होती सदा,
धरती का परिधान ।
बारिश के जलपान से,
खुश होते हैं धान।।
आज धरा को हो रहा, सुंदर सा आभास।
बादल अंबर के सभी, तोड़ चुके संन्यास।।
झड़ी लगी बरसात की, छाता रक्खो पास।
दुख में जो भी साथ दे, समझो उसको खास ।।
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