खड़ी करी दीवार कई
सख्तबहुत होती वह
लकड़ी
जिससे चौकट बनी भई
और बड़ा सा एक है
आंगन
जिसमें रसोई और शौचालय है
चिमनी ओरी और धरा से
बना हुआ ये आलय है
अब मेरे घर को तुम देखो
जिसमें हम सब रहते
हैं
प्यार बांटते एक दूजे को
हम बगिया के फूल है
हमसे है घर में
उजियारा
लड़ना सदा फिजूल है
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