सीता सोचे राम को मिला यहाँ पर राम को, दारुण दुख संताप। कभी-कभी निज काम का, होता पश्चाताप।। सीता सोचे राम को, यहाँ सदा दिन रैन। सुनकर बातें राम की, मिलता उसको चैन।। सच ही कहने का यहाँ , करना सदा प्रयास। झूठ बोलकर टूटता, सबका ही विश्वास।। सोच यदि अच्छी रहे, अच्छा हो परिणाम। भजने से श्रीराम को, बनते सारे काम।। किया गदे से मारकर, राक्षस का संहार। हनुमत का तो तेज था, केवल मुट्ठी प्रहार।। धन्य हुई माँ भारती, पाकर पुण्य पीयूष। महत्व ले उगता रहा, यहाँ घास अरु फूस।। |
No comments:
Post a Comment