राधेगोपाल छंद गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी द्वारा बनाए गए 106 नूतन छंदों में एक छंद "राधेगोपाल छंद" हमे भी आशीर्वाद के रूप में मिला आप सदा अपनी छत्र छाया में रखें आप दीर्घायु रहें ■ राधेगोपाल छंद का शिल्प विधान ■ वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए 222 212 222 212 12 मगण रगण मगण रगण लघु गुरु (लगा) 222 212 222 212 12 गुरुदेव के आशीर्वाद के बाद परम आदरणीय बाबूलाल शर्मा बौहरा विज्ञ जी ने राधेगोपाल छंद पर अपनी लेखनी से हमे अभिभूत किया आपका आशीर्वाद भी सदा बना रहे राधे गोपाल हरि आपस में आज यूँ ठनी। वृन्दावन हरि रमें राधाजी छाँव वट घनी।। झूले पर रार करि राधे गोपाल द्वय लड़े पहले तू झूल अलि दोनो ही पेड़ चढ़ अड़े गोपी हँसती रही बातो में बात अब तनी राधे.................ठनी मुरली झट छीन कर राधे जी कान खींचती गिरधर तब खूब हिय हँसे राधा तब वक्ष पीटती पुरवाई वायु चल वर्षा तरु पात छनी राधे............ठनी ग्वाले भी हँस रहे ताली दे दे नचे हँसे राधे गोपाल हरि उन सबके बीच द्वय फँसे अपने यह सोच मन जग में राधा बहुत धनी राधे....................ठनी |
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