दिख रहे जंगल व झाड़ी दूर तक
पेड़ पौधे तो धरा की शान है
पर चली इन में कुल्हाड़ी दूर तक
कितने ही परिधान में सिमटी है नार
पर पसंद आती है साड़ी दूर तक
घूमने सब जा रहे बाजार को
रास आती खेती-बाड़ी दूर तक
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई है यहाँ
पर नजर आते पहाड़ी दूर तक
क्रोध माया मोह से सब हैं भरे
प्यार से दुनिया पिछाड़ी दूर तक
लिख रहे हैं गीत गजलें सब यहाँ
राधे जाती है अघाड़ी दूर तक
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