भारत देश कर रहा है अपना ही विकास अब ।
दीप अपने माटी के ही कर रहे प्रकाश अब।।
लेने आ रहे हैं सब सूर्य से है रोशनी।
चांद से भी मांगते हैं लोग शीतल चांदनी ।।
टकराएगा जो देश से उसका हो विनाश अब।
दीप अपने माटी के ही कर रहे प्रकाश अब ।।
चल रहे हैं आज वीर देखो कितनी शान से।
उठ रहा हमारा शीश आज स्वाभिमान से।।
जल थल नभ में हो रहा हुलास (प्रसन्नता )अब ।
दीप अपने माटी के ही कर रहे प्रकाश अब।।
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