दोहे "
बच्चों को अच्छे लगे, चटकीले ही रंग"
हाल कभी पूछा नहीं, जब थी तन मे स्वास।
स्वास निकलते ही सभी, देखो आए पास।।
चिंता में जलते सभी, अक्सर दिन और रात ।
नहीं मौत के सामने ,चलती यहाँ बिसात।।
सोच समझ कर ही सदा, बोलो मुख से बोल ।
वाणी पर संयम रखो ,वाणी है अनमोल।।
सूती साटन रेशमी, कपड़ों की है किस्म।
मनचाहे परिधान से, ढक लो अपना जिस्म।।
बच्चों को अच्छे लगे, चटकीले ही रंग।
सबकी अपनी पसंद के, अलग अलग है ढंग।।
तन में सबके सोहते, रंगीले परिधान ।
अच्छे कपड़ों से रहे, दुनिया में सम्मान ।।
व्यवहारिक बनना यहाँ , करना सबका मान।
उतना ही तुमको मिले, जितना दोगे दान।।
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Saturday, 3 November 2018
दोहे " बच्चों को अच्छे लगे, चटकीले ही रंग" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
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