भूमिका "राधे की अंजुमन” दिल से निकली ग़ज़लें साहित्य जगत में नवोदित राधा तिवारी की दो पुस्तकें “सृजन कुंज” (काव्य संकलन) और “जीवन का भूगोल” (दोहा संग्रह) प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल ही में इन्होंने ग़ज़लों पर भी अपनी लेखनी चलाई है और “राधे की अंजुमन” के नाम से इनका ग़ज़ल संग्रह अब प्रकाशन की कतार में है। मैं अपने को सौभाग्यशाली समझता हूँ कि राधा तिवारी मुझे अपना गुरु मानती हैं और अपने प्रत्येक नये सृजन को मुझसे साझा करती है। “राधे की अंजुमन” की पाण्डुलिपि को मैंने कई बार सांगोपांग बाँचा है। ग़ज़ल बहुत पुरानी तथा नाजुक विधा है। सीधे-सादे शब्दों में अपनी बात को कहना एक कला है। गज़लों के अशआर अगर दिलकश होंगे तो जनमानस पर सीधा असर करेंगे। कवयित्री राधा तिवारी (राधेगोपाल) ने “राधे की अंजुमन” में इस रवायत को बाखूबी निभाया है। अपनी बात में कवयित्री ने कहा है- “...मुझे बचपन से ही लिखने में बहुत रुचि रही है। कक्षा दो से मैंने लिखना आरंभ किया और तब से निरंतर आज तक लिख रही हूँ। अब तो मेरी लेखनी मुझे हक से कहती है की रचना कर। कभी मेरे शब्द मेरे भाव कविताओं का रूप लेते हैं तो कभी दोहे ग़ज़ल कुंडली हाइकु गीत आदि रचते रहते हैं। हाल ही में मेरी पुस्तकें 'सृजन कुंज ' काव्य संग्रह और 'जीवन का भूगोल' दोहा संग्रह निकली थी और अब आपके सामने मैं अपना ग़ज़ल संग्रह "राधे की अंजुमन" लेकर आयी हूँ”.... .....आज मेरे लिखने का आलम यह है कि घर के हर छोटे-बड़े कार्य करते समय, सोते जगते समय ,मेरे पास मेरी डायरी जरूर रहती है कि कहीं मुझे कुछ विचार आए और वह मैं न उतार पाई तो वह विचार फिर से नहीं आएंगे तो विचारों को शब्दों का रूप देकर के मैं निरंतर लिखती रही, और लिखती रहूँगी।....” कवयित्री ने अपने ग़ज़ल संग्रह “राधे की अंजुमन” का श्री गणेश माँ वीणापाणि की वन्दना में लिखी ग़ज़ल से किया है, जो आपको माता के प्रति समर्पण को स्पष्ट रूप से दर्शाता है- “वीणा वादिनी आपकी, जबसे शरण में आई हूँ मातु आपकी किरपा से, मैं विदुषी कहलाई हूँ -- वरद हस्त ‘राधे’ के सिर पर, रखना मेरी मातु सदा साथ तुम्हारा पाकर मैया, मैं भी तो इठलाई हूँ” हमारे आस-पास बहुत से बिम्ब बिखरे हुए हैं। जिन पर कलम चलाना विरले ही जानते हैं। राधा तिवारी ने दर्पण को अपनी ग़ज़ल में जिस प्रकार उकेरा है, वो देखते ही बनता है- “सुधरना है हमें कैसे यही दर्पण सिखाते हैं सवँरना है यहाँ कैसे हमें दर्पण बताते हैं -- खरीदारी करें कैसे यहाँ है माल इक जैसा मगर तारीफ करके माल सब अपना बिकाते हैं” नये जमाने के प्रति अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए कवयित्री ने अपनी ग़ज़ल कुछ इस प्रकार से कही है- “आजकल के जमाने को क्या हो गया नौजवानों के दिल को ये क्या हो गया देखते दूसरों की सभी खामियाँ हमने शीशा दिखाया तो क्या हो गया” देशभक्ति की भावना पर बल देते हुए कवयित्री लिखती है- “सेवा करने को वतन की आइए देश भक्ति के तराने गाइए -- रास आएगी उन्हें भी जिंदगी घर गरीबों के बनाते जाइए” इस संकलन की उम्दा ग़ज़ल आजकल के आदमी पर कटाक्ष करते हुए रची गई है- “आदमी ही आदमी को आज छलता जा रहा हर समय भूतल तवा सा आज जलता जा रहा -- नेकियाँ अब तो सभी फरेब बनती जा रही भाई ही भाई को अब तो रोज खलता जा रहा” बीते लम्हें कभी किसी का पीछा नहीं छोड़ते। उन्हीं पलों को ग़ज़लगो राधा तिवारी ने अपने शब्दों में इस प्रकार से बाँधा है- “बिसरती है तेरी यादें उन्हें फिर ढूँढ लाती हूँ गुजर जाती है जो घड़ियां उन्हें फिर से जगाती हूँ -- चुरा लूँ मैं सितारों को घटा घनघोर है छाई धरा का तम मिटाने को मैं जुगनू को बुलाती हूँ” कवयित्री पर्वतीय मूल की है और उसे पहाड़ी परिवेश बरबस याद आ ही जाता है। जिसे उसने अपनी ग़ज़ल में इस प्रकार से कहा है- “दिख रही ऊंची पहाड़ी दूर तक दिख रहे जंगल व झाड़ी दूर तक -- पेड़ पौधे तो धरा की शान है पर चली इन में कुल्हाड़ी दूर तक” शिक्षिका होने के नाते कवयित्री ने अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए लिखा है- “स्कूल में हमारे, अब खेल हो रहे हैं बच्चे यहाँ के सारे, खेलों में खो रहे हैं -- खो खो कहीं कबड्डी, कहीं कूद हो रही है जिनको लगी है चोटें, वह खूब रो रहे हैं” आधुनिक परिवारों के प्रति भी ग़ज़लकारा ने अपनी सम्वेदना प्रकट करते हुए लिखा है- “जगत में तन्हाई बढ़ती जा रही है दिलों में अब खाई बढ़ती जा रही है -- प्यार से पाला था जिनको उम्र भर उनकी बेवफाई बढ़ती जा रही है” परिणय और प्रणय पर अपने अनुभव को साझा करते हुए कवयित्री लिखती है- “दुल्हन अपना पिया देखकर क्यों इतना शर्माती है नाक में नथनी कान में कुंडल पहनके क्यों इतराती है -- साजनजी जब पास बुलाते हौले-हौले जाती है जब पायल के घुंघरू बजते मन में क्यों इठलाती है” अपनी बहुआयामी ग़ज़ल में राधा तिवारी लिखती है- “जो बस गई है मुझ में वो खुशबू उसी की है जी रही हूँ जिंदगी वो भी उसी की है -- रहता है आसपास मेरे साथ जो सदा हंसते हुए लबों की बंदगी उसी की है” एक कामकाजी महिला के लिए अपने व्यस्त जीवन चूल्हे-चौके से लेकर साहित्य रचना के लिए समय निकालना बहुत कठिन होता है। मगर राधा तिवारी ने अपने सभी दायित्वों का कुशलता से निर्वहन किया है। हमारे आस-पास जो कुछ घट रहा है उसे कवयित्री राधा तिवारी ”राधेगोपाल” को उसे शब्द देने में विशेष महारत है। ग़ज़ल के सभी पहलुओं को संग-साथ लेकर अशआरों में ढालना एक दुष्कर कार्य होता है मगर विदूषी कवयित्री ने इस कार्य को सम्भव कर दिखाया है। कुल मिलाकर देखा जाये तो इस काव्य संग्रह की सभी ग़ज़लें बहुत मार्मिक और पठनीय है। हकीकत तो यह है कि इस मजमुए की अभिव्यक्तियाँ मील के पत्थर जैसी हैं। मुझे आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वास भी है कि “राधे की अंजुमन” की ग़ज़लें पाठकों के दिल की गहराइयों तक जाकर अपनी जगह बनायेगी और समीक्षकों की दृष्टि में भी यह उपादेय सिद्ध होगी। मुझे यह भी आशा है कि मेरी शिष्या राधा तिवारी “राधेगोपाल” की साहित्य की जानी-मानी विधाओं पर और भी कई कृतियाँ जल्दी ही प्रकाशित होंगी। हार्दिक शुभकामनाओं के साथ- (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') कवि एवं साहित्यकार टनकपुर-रोड, खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308 मोबाइल-7906360576 Website. http://uchcharan.blogspot.com/ E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com -- http://uchcharan.blogspot.com/2020/01/blog-post_9.html |
Wednesday, 22 December 2021
राधा तिवारी " राधेगोपाल " , "राधे की अंजुमन पुस्तक की भूमिका"
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