ग़ज़ल राज कैसे खोलती है आज कमसिन सी जवानी दृग पटल को खोलती है। ले हया का एक पर्दा झाँक कर कुछ बोलती है।। वो अदाओं में सिमट कर आज कैसे चल रही। देख हिरनी सी बिदकती डोलती हैैं।। बंद जो जूही कली थी अब तलक तो इस जगत में। नयन में कजरा लगा कर राज कैसे खोलती है।। देख रघुवर सामने अब चँद सी आभा लिए। आज पलकों को उठा कर इस जगत को टोलती है।। रूप मंजुल सा धरा श्रृंगार कर गोरी चली। प्यार की मुस्कान से ही अब पिया को झोलती है।। |
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (22-12-2021) को चर्चा मंच "दूब-सा स्वपोषी बनना है तुझे" (चर्चा अंक-4286) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी इस प्रविष्टि को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय
ReplyDelete