Wednesday, 8 December 2021

राधा तिवारी राधेगोपाल , विमोचन , सृजन कुंज और जीवन का भूगोल

 





सृजन कुंज और जीवन का भूगोल

सम्मानित मंच एवं यहां उपस्थित सभी अतिथियों को मेरा प्रणाम करते हुए आज में इस पावन अवसर पर अपने हृदय के उद्गारों को प्रकट करना चाहती हूँ।

    आज समय बदल चुका है महिलाएं या लड़कियां अब कमजोर नहीं हैं। आज के समय में कोई भी ऐसा काम नहीं है , जो महिलाएं कर सकें यह तो आप सबको विदित ही होगा कि आज  हमारे देश की महिलाएं सभी क्षेत्रों में कितनी आगे हैं तो आइए आज मैं सभी को अपनी मम्मी  से मिलाना चाहती हूं, जो हर काम को बहुत ही आसानी और साथ ही नए तरीके से करना जानती हैं कहने को तो यह मेरी मम्मी  है लेकिन कभी-कभी मुझे खुद समझ में नहीं आता कि ये अध्यापिका है या गृहणी है या कवियत्री हैं। आज मैं आप सभी को मम्मी के बारे में कुछ नया बताना चाहती हूँ, जो शायद आप ना जानते हो, जिस उम्र में आप औऱ हम  गुनगुनाते थे, मछली जल की रानी है जीवन उसका पानी है , तो उसी उम्र में  मम्मी ने स्वयं से लिखी पहली कविताएं गुनगुनाई थी

नदी सी निर्मल फूलों सी कोमल है मेरी मां

       मम्मी को बचपन से ही कविताएं लिखने का बहुत शौक है। मम्मी ने अपनी पहली कविता तब लिखी थी जब मम्मी  कक्षा-2 में पढ़ती थीं। उसके बाद कविताओं का दौर चलता रहा और इसी का परिणाम है कि आज मेरी मम्मी की दो पुस्तकें छप कर गयीं हैं और उनका विमोचम हो रहा है। बचपन से अब तक मम्मी ने शायद दो - तीन हजार से भी ज्यादा कविताएं लिख दी है... इन्हें हम सिर्फ एक कवियत्री ही नहीं बोलेंगे बल्कि यह एक बहुत अच्छी आशु कवियत्री तथा धुन की धुनी एक बेहतरीन साहित्यकारा ही कहेंगे

      बचपन से लेकर अभी तक मम्मी ने जितनी भी चीजें देखी है , या जितने लोगों से मिली है, , उन सब के ऊपर एक कविता जरूर बनाई है इन्हें कविता लिखना बहुत ही ज्यादा पसंद है कविता लिखते समय यह नहीं देखती कि यह किस जगह है या बोलें तो क्या समय हो रहा हैमेरा मानना यह है कि जैसे इंसान को जीने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है वैसे ही इन्हें जीने के लिए सिर्फ एक कॉपी और पेन की जरूरत है जिसमें यह अपने मन के विचार लिखती है और मम्मी की कविताएं सुनकर ऐसा लगता है कि यह हर चीज के बहुत गहराई में चली जाती है। इन्होंने  अगर किसी भी चीज को एक बार गौर से देख लिया तो इतना तो पक्का है कि उसके ऊपर एक कविता जरूर बनेगी आज तक कोई भी दिन ऐसा नहीं जब इन्होंने कविता ना लिखी हो। यह हर चीज बर्दाश्त कर सकती है लेकिन मम्मी की कविता कोई भी इनसे बिना पूछे छुए या इनकी स्वयं रचित कविता कोई चोरी करें तो यह बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करती है और बहुत नाराज हो जाती है।

       कविता लिखने के बाद इन्हें कविता सुनाना बहुत पसंद है यह चाहती है कि इन की कविता की हर लाइन के बाद लोग वाह-वाह करें, इससे इनका मनोबल और ज्यादा मजबूत होता है और इन्हें ऐसा करने से अंदर से खुशी मिलती है। आइए आप सभी को इन की कविताओं की कुछ कुछ पंक्तियों में ले जाना चाहती हूं। इनकी ज्यादातर कविताएं अपनी मां के लिए होती है और साथ ही राधा कृष्ण के लिए और बच्चों के लिए। इन्होंने 10 साल रीठा खाल में बिताये और वहां भी इन्होंने खाली वक्त में बोर होने के बजाए कविताएं ही लिखी इनके द्वारा लिखी गई पहाड़ों के ऊपर एक बहुत सुंदर कविता , जो कि मैंने खुद खटीमा में हुए 2011 के उत्तरायणी मेले में प्रस्तुत की थी , और वह कविता के बोल थे ,

पहाड़ की हालत देख

अब मेरा दिल यह कहता है,

देखना एक दिन पहाड़ ही उजड़ जायेगा ,

गर पर्वतों को काटकर हम राह बनाएंगे ,

तो देखना एक दिन पर्वत ही उजड़ जायेगा।

 

 जब इन्होंने रीठा खाल में पहली बार बर्फबारी देखी थी तो इन्होंने उसके ऊपर भी एक कविता लिखी थी, और उस कविता के बोल थे ,

श्वेत श्वेत हिमखंड आकाश से बरस रहे , लग रहा हीरे मोती धरा पर हैं टपक रहे "

        इनकी कविताएं मुझे तो बचपन से ही बहुत पसंद है, और मैं अक्सर कहा करती थी , मम्मी इनकी किताब छपवाइए , अखबारों में निकालवाइएलेकिन मम्मी के बस कुछ ही शब्द हुआ करते थे , बेटा अभी नहीं मेरा ट्रांसफर हो जाने दे खटीमा, उसके बाद , और शायद यह वही वक्त है जब मेरी मम्मी  खटीमा सबौर हाई स्कूल चुकी है , और अब इनकी कविताएं खटीमा के लोगों के बीच और साथ ही हमारे बीच चुकी है। इनके द्वारा लिखी गई बहुत सारी कविताएं है तो चलिए मैं आपको कुछ कविताओं के नाम बताऊ जो इनके द्वारा लिखित है।

1. जब मुझको बुलाए कान्हा तुम देर ना लगाना

2. पहाड़ की हालत देख अब मेरा दिल यह कहता है

3.मनी प्लांट और तुलसी

4. मेरी मां

5. चिमटा

6. जोकर

7. मेरे दुख तुम अच्छे हो

8.. माता बन मुझको मिला

9. भूखा हूं मैं मेरी मैया

 

10. दिलों में प्यार कैसे बढ़ाए आदि।

      मम्मी ने बचपन से लेकर अभी तक बहुत सी कविताएं तो लिखी है , साथ ही यह कहानियां भी लिखा करती थी और अब इन्होंने दोहे लिखना भी कुछ समय से शुरू किया है इन्होंने अभी कुछ ही महीनों में हजार से ऊपर दोहे लिख दिए हैं। तो आइए ,मैं आप सभी को अब इनके दोहे की दो पंक्तियों में ले जाना चाहती हूं , जो कि शायद इन्होंने अपने लिए ही लिखी थी , और वह दोहा था ,

   "  राधे को अब लग गया , लेखन का ही रोग।

     अच्छे भले दिमाग को, पागल कहते लोग ।। "

 यह बात है अक्टूबर 18, 2017 की जब गाजियाबाद में 25 वा अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन हुआ था , और वहां इन्हें युवा प्रतिभा सम्मान मिला, शायद यह वह क्षण था इनके जीवन का जब इनकी खुशी का ठिकाना नहीं था अक्टूबर 2017 में यू एस एम पत्रिका मैं इनकी कविता आई थी, और साथ ही जहां मिले धरती आकाश नाम से एक नव समसप्तक साहित्य संखला भी निकली थी, जिसमें कम से कम 10 पेज इनके भी थे। और आज यह वही दिन है जब हम सभी को इस दिन का इंतजार था, कि इनके द्वारा लिखी गई कविताएं एवं दोहे की किताब हम सभी के सामने आए और इनकी पहचान कविताओं के क्षेत्र में और ज्यादा बने मुझे बहुत अच्छा लगता है जब इनके द्वारा लिखी गई कविताएं अखबार में या किसी भी पत्रिका में आती है , क्योंकि तब सिर्फ इनका ही नाम नहीं होता बल्कि उसमें हमारा भी नाम होता है और साथ ही मै सबोरा हाई स्कूल का भी नाम होता है, जहां यह एक अंग्रेजी की अध्यापिका है   मुझे तो बहुत गर्व है, कि मेरी मां अंग्रेजी की अध्यापिका होते हुए भी, हिंदी में इतनी सुंदर कविताएं लिखती है , जो कि हर एक व्यक्ति को दिल से पसंद आती है इनके द्वारा लिखी गई दो किताबे सृजन कुंज और जीवन का भूगोल जिनका आज विमोचन हो रहा हैतो आइए , मैं पहले आपको इनकी पहली पुस्तिका के बारे में बता दूं जिसका नाम है, सजन कुंज -- जिसमें इन्होंने काव्य प्रस्तुत किए हैं , और यह सारी कविताएं मम्मी ने अपनी शादी से पहले  लिखी थी  और यह किताब मम्मी ने  अपने माता-पिता और अपनी बड़ी दीदी को समर्पित की है। और साथ ही मैं मम्मी की दूसरी  पुस्तिका , जीवन का भूगोल-- जिसमें मम्मी ने दोहे लिखे हैं , और यह दोहे शादी के बाद के लिखे हुए हैं तो इसीलिए इन्होंने इस किताब को मेरे डैडी श्री गोपाल दत्त तिवारी जी को समर्पित की है। तो आइए हम सभी मिलकर आज उन को तहे दिल से बधाई देते हैं , और आशा करते हैं कि आने वाले बहुत ही जल्दी कुछ समय में हम सब फिर से यहां ऐसे ही एकत्रित होए

 

धन्यवाद


स्वाति तिवारी 

लक्षिता फार्मेसी

कंजाबाग रोड  

खटीमा

w/o डॉ गौरव भट्ट 

प्रेम जी मेमोरियल हॉस्पिटल 

कंजाबाग रोड  

खटीमा

-

Tuesday, 7 December 2021

राधा तिवारी ,राधेगोपाल ,दोहे, वन संपदा

 


 वन संपदा
संसाधन जग में मिलेसब को एक समान।
 इन संसाधन को सदादेना तुम तो मान।।

 वन संपदा ही रहेसदा देश की शान।
 पेड़ उगा कर आप भी, लेना जीवनदान।।

 नहीं पेड़ को काटकरधरा करो बर्बाद। 
पेड़ों से है जिंदगी, जीव जंतु आबाद।।

 जल को अमृत मान कर सदा दीजिए मान। 
पानी की हर बूंद का करना तुम सम्मान।।

राधा तिवारी"राधेगोपाल" 
खटीमा 
उधम सिंह नगर 
उत्तराखंड
-

Thursday, 18 November 2021

राधा तिवारी ,"राधेगोपाल ", *रक्तबीज कोरोना* विधा *गीत*

 



*रक्तबीज कोरोना* 
विधा *गीत*
रक्त बीज कोरोना आया
बनकर देखो एक बिमारी
मानव घर में छिप कर बैठा
है उसकी कैसी लाचारी

क्यों आया ये कहाँ से आया
ये तो हमको पता नहीं
मार रहा है निर्दई हो कर
जिनकी कोई खता नहीं
रोग बना है बड़ा तामसी
जकड़ी है दुनिया सारी।
रक्त बीज कोरोना आया
बनकर देखो एक बीमारी

खाकी वर्दी धारी आए
साथ में अपने डॉक्टर लाए
साफ सफाई करने देखो
हमने कितने ईश्वर पाए
हँसते गाते खुश हो करके
खेल रहे सब अपनी पारी
रक्त बीज कोरोना आया
बनकर देखो एक बीमारी

जीव जंतु के जैसे हम सब 
पिंजर में है आज फँसे 
घूम रहे हैं वह सब देखो 
और हमीं पर आज हँसे  
आल्हादित्त मत होना इंसान
भीर सभी पर है भारी 
रक्त बीज कोरोना आया 
बनकर देखो एक बीमारी
-

Sunday, 14 November 2021

राधा तिवारी "राधेगोपाल" , मनहरण घनाक्षरी , "चाँद "

 



चाँद 
चाँद  को चकोरी से
 चकोरी जी को चाँद से
 एक दूजे से तो हमें
प्यार होना चाहिए

दिन को तो रात से
और रात को तो दिन से
अंधेरे को उजाले में
भी तो होना चाहिए

रात का नजारा कहे
अरे वह सितारा का है
आज आंख मूंदकर
घर सोना चाहिए

माताजी का प्यार मिले
पिता मनुहार करे 
गोदी में ही रहकर
हँस रोना चाहिए

*राधा तिवारी"राधेगोपाल"*


-

राधा तिवारी , " राधेगोपाल" , दोहा छंद , "आजादी"

 


 - *आजादी*
विधा - दोहा छंद


*आजादी* फिर छीनताएक विदेशी रोग।
बैठ गए अब धाम में,सकल विश्व के लोग।।1।।

*आजादी* से घूमनामूरख की पहचान।
सुन लो जब तक जान हैसुंदर लगे जहान।।2।।

*आजादी* मत दो उसेरखो कैद में रोग।
बचने को इस रोग सेकरते रहना योग।।3।।

*आजादी* यदि चाहिएरखना इतना ध्यान।
हाथ जोड़कर कीजिएसबका ही सम्मान।।4।।

कोरोना अब खेलता,देखो कैसा खेल,
 *आजादी* में खुद फिरे,मानव को दी जेल।।5।।

*राधा तिवारी"राधेगोपाल"* 

Saturday, 13 November 2021

राधा तिवारी राधेगोपाल , घनाक्षरी , "रोटी दिलवाइए"

 



रोटी दिलवाइए
 कोरोना का रोग भारी 
आई कैसी महामारी
घर में ही रहने को
आप समझाइए

घर में ही रहते हैं
भूख प्यास रहते हैं
निर्धन को भी आप
रोटी दिलवाइए

चौपाट है काम धाम
बंद है सारे आयाम
जलती है पेट में जो
 अगन बुझाईए

चले रोग कैसा चाल
सारा जग है निढाल
घर में ही रहकर
जिंदगी बचाइए

दुश्मन चले चाल
जीना तो हुआ मुहाल
मजबूरी का न आप
फायदा उठाइए

*राधा तिवारी"राधेगोपाल"*
*खटीमा*
*उधम सिंह नगर*
*उत्तराखंड*
-

Wednesday, 10 November 2021

राधा तिवारी "राधेगोपाल" , घनाक्षारी , " वीभत्स रस "




 विषय *वीभत्स रस*

विधा *घनाक्षारी*

आया है ये कैसा काल
कोरोना का फैला जाल
बिछती धरा पे आज
कितनी ही लाश है

देख रहे गिद्ध आँख
रोक रहे हैं वो पाँख
शव पे तो चोंच से वो
डाल रहे पाश हैं

तड़प रहे हैं लोग
तंग करता है रोग
उपचार इसका ही
बन जाए काश है

सूरा की बोतल खाली
नोट सभी आए जाली
हाथों में ही रह गए 
 नए नए ताश हैं