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Tuesday, 25 October 2022

राधा तिवारी "राधेगोपाल" , गीत , फिर इस बार

 




फिर इस बार




गाँव घरों में दीन दुखी भी रह लें अब खुशहाली में।

मिट्टी वाले दिए जलेंगे फिर इस बार दिवाली में।


वतन रहे आबाद हमारा घर-घर दीप जलाएँगे।

क्रोध घृणा का तमस मिटेगा हम सब खुशियाँ पाएँगे।

छप्पन भोग रहेंगे सुन लो फिर से अब हर थाली में।

मिट्टी वाले दिए जलेंगे फिर इस बार दिवाली में।।


नहीं रहेगी रात अमावस धवल चांँदनी बिखरेगी।

माटी के इन दीपों से तो धरती माता निखरेगी।

चलो बहाए जले दीप को गंगा यमुना काली में।

मिट्टी वाले दिए जलेंगे फिर इस बार दिवाली में।।


लक्ष्मी माता छम छम करके सबके घर में आएगी।

धन दौलत की वर्षा होगी पीर सभी मिट जाएगी।

बच्चों की किलकारी होगी घर गूँजेगा ताली में।

मिट्टी वाले दिए जलेंगे फिर इस बार दिवाली में।।


Saturday, 18 June 2022

राधा तिवारी "राधेगोपाल" , "छंद" , विमला छंद विधान ,"मन की पीड़ा"





 छंद

विषय - बिटिया
*विमला छंद विधान*
सगण मगण नगण लघु गुरु
११२  २२२  १११  १ २
११ वर्ण१६ मात्रा
चार चरणका छंद
दो दो चरण समतुकांत         

मन की पीड़ा

112 222 111 1 2
11 वर्ण 16 मात्रा

घर में बेटी जो पग रखती।
सबकी आभा भी नभ चढ़ती।
करती है वो बात विहँसती।
लगती जैसे खेल किलकती।

चिड़िया जैसी कूहुक  रहती। 
नदिया जैसी ही वह बहती। 
मन की पीड़ा को वह सहती।
मुँह से बातों को कम कहती ।

दिख जाती वो है नभ तल में।
दिखती जैसे ईश कमल में। 
सबको देती मान हृदय से।
रह जाती वो तो चुप भय से।

बढ़ती पाबंदी जब उस पे।
अड़ जाती है वो फिर पथ पे।
मन की सारी बात बिखरती।
फिर भी बेटी आप निखरती।


राधा तिवारी"राधेगोपाल" 
खटीमा 
उधम सिंह नगर 
उत्तराखंड







Wednesday, 10 November 2021

राधा तिवारी "राधेगोपाल" , घनाक्षारी , " वीभत्स रस "




 विषय *वीभत्स रस*

विधा *घनाक्षारी*

आया है ये कैसा काल
कोरोना का फैला जाल
बिछती धरा पे आज
कितनी ही लाश है

देख रहे गिद्ध आँख
रोक रहे हैं वो पाँख
शव पे तो चोंच से वो
डाल रहे पाश हैं

तड़प रहे हैं लोग
तंग करता है रोग
उपचार इसका ही
बन जाए काश है

सूरा की बोतल खाली
नोट सभी आए जाली
हाथों में ही रह गए 
 नए नए ताश हैं