विषय *वीभत्स रस*
विधा *घनाक्षारी*
आया है ये कैसा काल
कोरोना का फैला जाल
बिछती धरा पे आज
कितनी ही लाश है
देख रहे गिद्ध आँख
रोक रहे हैं वो पाँख
शव पे तो चोंच से वो
डाल रहे पाश हैं
तड़प रहे हैं लोग
तंग करता है रोग
उपचार इसका ही
बन जाए काश है
सूरा की बोतल खाली
नोट सभी आए जाली
हाथों में ही रह गए
नए नए ताश हैं
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