दोहा
लिखना आता है नहीं,दोहा जिन्हें जनाब। चरणों को कैसे लिखें, दे दो जरा जवाब।।
पहले गिन कर देख लो, मात्राओं को आप।
शब्दों का होगा तभी, तालमेल से माप।।
गिनती गर होगी गलत, बिगड़ जाएगी ताल।
अगर सही से गिन लिया, दोहा बने कमाल।।
चार चरण में लिख लिया, करके सोच विचार।
पूरी अपनी बात का, भर कर इसमें सार।।
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Tuesday, 14 May 2019
दोहा, "लिखना आता है नहीं" (राधा तिवारी " राधेगोपाल ")
Monday, 13 May 2019
गीत, " गुणों की खान है नारी " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
" गुणों की खान है नारी "
गुणों की खान है नारी जग का अभिमान है नारी कभी अपमान मत करना हर घर की शान है नारी कभी देवी कभी दुर्गा कभी लक्ष्मी ये बनती है कभी अस्मत बचाने को ये काली रूप धरती है बिना इसके यहाँ पर नर कभी कुछ कर नहीं सकता नए नित रूप धर के दुख सभी के हर नहीं सकता तेरे हर एक पद चिन्ह की यहाँ पहचान है नारी गुणों की खान है नारी जग का अभिमान है नारी तू ही झांसी की रानी है तू ही सीता सरूपा है कभी ममता की मूरत है कभी लगती अनूपा है देकर जन्म तू खुद से धरा पर ला रही सबको तेरे हर रूप में नारी मैं तो देखती रब को चरण रज माथ पे रखदूं तू वरदान है नारी गुणों की खान है नारी जग का अभिमान है नारी |
Sunday, 12 May 2019
ग़ज़ल, "इजहार धीरे-धीरे" (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")
इजहार धीरे-धीरे
करते है प्रेम का वो इजहार धीरे-धीरे
इंकार धीरे धीरे इकरार धीरे-धीरेकहते हैं वो की राधे कुछ लिख नहीं सकेगी
लेकिन दुआ वो करते हर बार धीरे-धीरे
मर्ज वो लगा है बचना नहीं है मुमकिनदेते दवा भी वो तो हर बार धीरे-धीरेजीने को इस धरा पर विष सारे पी रहे हैंहर बार वो पिलाते मधुधार धीरे-धीरेआते हैं पास अक्सर ख्वाबों में रात को वोआकर जगा रहे हैं हर बार धीरे-धीरेकरके इशारे अक्सर वो बात अपनी कहते
दिल में उतर रहे हैं हर बार धीरे-धीरे
कुछ भी नही है रिश्ता राधे का उनसे कोई
पर बन रहे हैं अब वो सरकार धीरे-धीरे
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Saturday, 11 May 2019
गीत, " चेतक " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
चेतक
कहे राणा महाराणा तुम्हें तो ये जगत सारा तुम्हें चेतक सदा लगता था अपने प्राण से प्यारा बैठते जब भी थे इस पर हवा से बात करता था जब भी डोर खींची थी उछलने को मचलता था तुम्हारे साथ में राणा ये चेतक खूब जचता था तुम्हारे रण की नीति को सदा चेतक ही रचता था रोटी घास की खाई बिताई रात जंगल में मगर चेतक के संग रहकर रहे हरदम ही मंगल में जगतसिरमौर थे तुम तो तुम्हारा अश्व था तारा धरा से बात करता था दिखाता था गगन न्यारा |
Thursday, 9 May 2019
गीत, "शेर की मान्द" (राधा तिवारी " राधेगोपाल )
शेर की मान्द
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शेर की मान्द में घुस कर, गीदड़ कभी नहीं बच पाएगा।
षड्यंत्र शिकार को करने का, कभी नहीं रच
पाएगा।।
आया जिसका काल वही तो निकट शेर के जाता है।
हल्ला गुल्ला नहीं शेर के आगे वो कर पाता है।।
मरने का नाटक भी शेर के आगे ना रच पाएगा।
षड्यंत्र शिकार को करने का, कभी नहीं रच पाएगा।।
गीदड़ सदा ही
जंगल में तो, खौफ शेर का रखता है ।
देख सिंह के पदचिन्हों
को, वो डर से थर्राता है।।
सुनो स्वान और गीदड़ कभी भी, राजा नहीं जच पाएगा।
षड्यंत्र शिकार का करने का, कभी नहीं रच पाएगा।।
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Tuesday, 7 May 2019
गीत, "मेरी माँ" (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")
मेरी माँ
जब मैं इस जग में आई तब घर में हुआ उजाला।
बड़े प्यार से देखो मुझको मेरी माँ ने पाला।।
मुझको कहती मेरी मम्मी अपना चांद सितारा।
दिया सदा माता ने मुझको भरकर अमृत प्याला ।
बड़े प्यार से देखो मुझको मेरी माँ ने है पाला।।
संतानों के देख दर्द को माँ के आंसू बहते।
माँ के चरणों में है जन्नत सभी लोग यह कहते।।
संतानों को पाल रही है देकर मधुर निवाला।
बड़े प्यार से देखो मुझको मेरी मां ने है पाला।।
बचपन मेरा सीचाँ
जिसने दूध पिला कर बड़ा किया।
करके प्यार और मनुहार पकड़ के
उंगली खड़ा किया।।
माता का दर्जा होता है जग मैं बहुत निराला।
बड़े प्यार से देखो मुझको मेरी माँ
ने है पाला।।
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