Friday, 10 January 2020

कुंडलियां , " सुख दुख " (राधा तिवारी " राधेगोपाल " ),


 सुख दुख
 सुख-दुख जीवन में सदा, आते एक समान |
सुख जल्दी से बीतता, दुख लाता व्यवधान |
दुख लाता व्यवधान, झलकती पीड़ा भारी |
ईश्वर करता दूर, सखे पनपती पीर तुम्हारी |
कह राधे गोपाल, तसल्ली रक्खो मन में |
आते रहते पास, अरे सुख-दुख जीवन में ||

Thursday, 9 January 2020

कुंडलियां, फूलों का उपहार ((राधा तिवारी " राधेगोपाल " ),


   फूलों का उपहार
चंपा की कलियां खिली, झूम रहा कचनार।
 बगिया सबको दे रही, फूलों का उपहार।।
फूलों का उपहार , प्रकृति हम सबको बांटे
फूलों के तो साथ, रहे हैं हरदम कांटे।
 कह राधे गोपाल,चलो मिलकर सब सखियां।
खिली हुईं है आज, सखी चंपा की कलियां।।

Wednesday, 8 January 2020

गीत, जग का अंदाज " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


 जग का अंदाज
धरा नभ की आवाज़ क्या जाने
 चकोरी के नए अंदाज चांद क्या जाने
 देखकर चंदा को रातों में
 कितना उसको है नाज़ क्या जाने

 रोज रात में यूं छिप छिप कर
 एक टक देखती है चंदा को
 चांद इजहार कर रहा खुलकर
 निराला है आगाज क्या जाने

 जुगनूओं बीच में ना जाओ तुम
 चकोरी को नहीं लुभाओ तुम
 तारों की तरह तुम चमक नहीं सकते
 राधे जग का अंदाज क्या जाने

Tuesday, 31 December 2019

कुण्डलियाँ , " बात " (राधा तिवारी " राधेगोपाल " )


बात
प्रेमी आपस में करें, आंखों से ही बात।
 शब्दों के आधार तो, पहुंचाते आघात।।
 पहुंचाते आघात, बात कर सोच समझ कर।
 करना मत तकरार, सुलझती बातें मिलकर।
 कह राधे गोपाल, लगाओ नेह सुयश में।
 मिलकर रहना साथ, सदा प्रेमी आपस में।।


 लगातार ही आ रही बारिश चारों ओर
कहीं बाढ की है दशा कहीं मेघ का शोर
 कहीं मेघ का शोर फटे अब क्यों पर बादल
 धरती पर तो नीर घूमता बनके पागल
 कह राधे गोपाल करेंगे वृक्ष पार ही
 बोते रहना पेड धरा पर लगातार ही

Monday, 30 December 2019

कुण्डलियाँ, "पिता तुम्हारी हृदय से " , (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")


पिता तुम्हारी हृदय से
 पिता तुम्हारी हृदय से, मिटी नहीं है याद |
कैंसे अब देखूँ तुम्हे, मन करता फरियाद |
मन करता फरियाद, देख लूँ पापा तुमको |
दे देना आशीष, हमेशा आकर हमको |
कह राधे गोपाल, वेदना सुना हमारी |
बसी हुईं है याद, सदा से पिता तुम्हारी ||


Sunday, 29 December 2019

कुण्डलियाँ, " कुल्हाड़ी ", (राधा तिवारी " राधेगोपाल " )


 कुल्हाड़ी
Image result for कुल्हाड़ी इमेज
सुख-दुख जीवन में सदा, आते एक समान |
सुख जल्दी से बीतता, दुख लाता व्यवधान |
दुख लाता व्यवधान, झलकती पीड़ा भारी |
ईश्वर करता दूर, सखे पनपती पीर तुम्हारी |
कह राधे गोपाल, तसल्ली रक्खो मन में |
आते रहते पास, अरे सुख-दुख जीवन में ||

 कुल्हाड़ी का तुम कभी, मत करना उपयोग |
पेड़ों के बिन जगत मेंं, बढ़ जाएँगे रोग |
बढ़ जाएँगे रोग, उगाओ पेड़ धरा पर |
सूखी बंजर भूमि, अरे तू हरा-भरा कर |
कह राधे गोपाल, बोलती सदा पहाड़ी |
पेड़ बचा लो मित्र, फेंककर दूर कुल्हाड़ी ||

कुण्डलियाँ, " जलकर काया भस्म " (राधा तिवारी " राधेगोपाल " )



 जलकर काया भस्म
 जलकर काया भस्म है, थी माटी की देह |
जीवित रहने के लिए, खाते हैं अवलेह |
खाते हैं अवलेह, पी रहे हैं गंगाजल |
खबर नहीं है यार, अरे क्या होगा प्रतिफल |
कह राधे गोपाल, रहो आपस में मिलकर |
माटी की है देह, भस्म हो जाए जलकर ||

: काम, क्रोध, मद, लोभ से, रहना हरदम दूर |
करके अच्छे काम को, होते सब मशहूर |
होते सब मशहूर, कभी नफरत मत पालो |
बांटो हरपल प्यार, फूट को कभी न डालो |
कह राधे गोपाल, रहो तुम सदा बोध में |
हो जाता नुकसान, हमेशा काम-क्रोध में ||

: मात-पिता के सामने, करो न ऊँची बात |
अपनी बातों से कभी, देना मत आघात |
देना मत आघात, वही हैं मीत घनेरे |
बनकर के मजदूर, बनाए सुंदर डेरे |
कह राधे गोपाल, जिंदगी दुखी बिता के |
देते हैं आकाश, सितारे मात-पिता के ||