उल्टा पकड़ा जो अखबार
सड़क किनारे के ढाबे पर रखा हुआ था एक अखबार
देखकर मानस लगे सोचने पढूँ इसे मैं भी एक बार
उठा के उसको बैठ गए तन करके वह कुर्सी पर
पढ़ना उनको तनिक ना आया बैठे मूर्ति बन कर
कभी पलटते पन्नों को कभी देखते इधर उधर
पड़ा नहीं क्यों कर मैंने भी सोच सोच कर गए सिहर
तभी पास में बच्चा आकर बोला अंकल बतला दो
अखबार कहां से पढ़ना है इतना तो हमको समझा दो
अंकल झूठ दिखावा करके बनो नहीं अब तुम लाचार
पहले इसको सीधा कर लो उल्टा पकड़ा जो अखबार
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Monday, 4 March 2019
बाल कविता, " उल्टा पकड़ा जो अखबार " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
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