Thursday, 6 May 2021

राधा तिवारी 'राधेगोपाल' " विज्ञात के साक्षात्कार"

परम आदरणीय गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी द्वारा वर्ष २०२० में  लिया गया मेरा साक्षात्कार जो" विज्ञात के  साक्षात्कार" में प्रकाशित हुआ 

देखिये उनका आशीर्वाद 


  *विज्ञात: राधा तिवारी 'राधेगोपालजी! वैसे तो आप किसी परिचय के मोहताज नहीं है। लेकिन फिर भी हमारे पाठक आपका परिचय आपके शब्दों में जानना चाहते हैं?*


नमस्कार जी 

राधेगोपाल : विज्ञात जी!  मैं राधा तिवारीराधेगोपाल” जोधपुर राजस्थान से हूँ। वहीं से मेरी प्रारंभिक शिक्षा हुई है।MA इंग्लिश तक मैंने अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा ग्रहण की ।मेरे पिताजी डॉ भोला दत्त पांडेयमाताजी श्रीमती आनंदी पांडेय है।मूल रूप से हम अल्मोड़ा रानीखेत के पांडेय हैं और मेरा विवाह खटीमा में(कालुखान)के श्री गोपाल दत्त तिवारी पुत्र( श्री पूर्णा नन्द तिवारी और श्रीमती आनंदी तिवारी) जी से वर्ष 1992 में हुआ था।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! फिर साहित्य के प्रति आपकी रुचि कैसे जागृत हुई ?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी!  देखिए साहित्य तो शायद मेरे रग रग में छिपा हुआ था ।मेरी माता जी एक अच्छी लेखिका थी लेकिन उन्होंने कभी भी अपने शब्दों को किताबों मेंकागजों पर नहीं उतारा बल्कि जब हमें कुछ चाहिए होता था तो वह तुरंत आशु कवियत्री के रूप में हमें कविता लिख कर के दे देती थी। मेरी मम्मी के आशीर्वाद को मैं कभी नहीं भूलुंगी माता पिता का आशीर्वाद मेरे साथ में पग पग पर रहा है और भगवान से प्रार्थना करूंगी कि हमेशा रहेगा।

कक्षा दो से मैंने कहानियाँ लिखनी शुरू की और लगभग तीन-चार वर्षों में लगभग 1000 कहानी लिखने के बाद मेरा मन कविताओं की तरफ मुड़ गया क्योंकि कविताओं में बहुत कम समय में हम कविता को रच लेते हैं और एक बार काव्य में कदम रखने के बाद मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! साहित्य से पृथक अभिरुचि के विषय क्या क्या हैं ?* 

राधेगोपाल : विज्ञात जी! विशेष अभिरुचियों की बात है तो मुझे खेल का बहुत शौक था और बचपन से ही मैं खेल के प्रति भी काफी सजग रहती थी ।मैं विद्यालय में हर खेल में प्रतिभाग करती थी और इसके अलावा सीखने की रुचि मुझ में बहुत ज्यादा हैबुलबुलगाइड और बाद में एनसीसी ले करके मैं अपने हर सपने को पूरा करती रही। मुझे एनसीसी सी” सर्टिफिकेट प्राप्त है इसके अलावा मैंने पैरासेलिंग भी की है और आर्मी विंग में पॉइंट टू टू  और एयर विंग में मैंने थ्री नोट थ्री रायफिल से कितने ही निशाने साधे,और मैं एक विद्यार्थी की तरह आज भी सीखने को हमेशा तत्पर रहती हूँ।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! आपकी पसंदीदा विद्या कौन सी हैजिसमें आप ज्यादा लिखना पसंद करते है ?* 

राधेगोपाल : विज्ञात जी! देखिए जिस तरह से एक माँ को अपने सभी बच्चे प्रिय होते हैं उसी प्रकार मुझे लेखन की हर शैली प्रिय है लेकिन फिर भी जब मैं कोई रचना लिखने बैठती हूँ तो अनायास ही अप्रत्यक्ष रूप से वह दोहे का रूप ले लेती है और मैं अनगिनत दोहों को दिन भर में रच लेती हूँ।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! साहित्य की एक वह विशेष बात क्या रही जिसने आप को सबसे अधिक आकर्षक किया?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! देखिए अंग्रेजी साहित्य से पढ़ना और अंग्रेजी साहित्य की ही शिक्षिका होने के बावजूद भी मुझे हिंदी के प्रति इतना लगाव है कि मैं हिंदी साहित्य में पूरी तरह से अपने आप को ढाल चुकी हूँ मैं साहित्य के क्षेत्र में लेखन कार्य कर रही हूँ और इसके लिए मैं श्रीमान संजय कौशिक 'विज्ञातजी को भी धन्यवाद देना चाहुँगी जिन्होंने मुझे व्हाट्सएप ग्रुप से जोड़ा और हिंदी के प्रति मेरी लगन बढ़ती गई और  हिंदी और अहिंदी शब्दों में भेद भी मुझे पता चलने लगे।यहाँ यदि में श्रीमान बाबू लाल बोहरा जी,श्री कृष्ण मोहन निगम जी ,श्रीमती नीतू जी ,श्रीमती अनीता मादिलवार जी का भी जिक्र करूं तो तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से और भी मेरे बहुत सारे शुभ चिंतक हैं जिन्होंने मेरी साहित्य प्रेम को बढ़ावा दिया ।हिंदी मेरी मातृभाषा है और इसका प्यार,इसकी शालीनता और मीठे शब्द मुझे अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! आप अपनी सशक्त लेखनी के लिए जिम्मेदार किसको मानते हैं अर्थात प्रेरणा स्रोत किसे मानती हैं ?* 

राधेगोपाल : विज्ञात जी! लिखने का शौक तो मुझे बचपन से था। शादी होने के बाद भी मैं लिखती रही लेकिन मुझे उपयुक्त मंच नहीं मिला। फिर वर्ष 2008 में मैं अति दुर्गम क्षेत्र में सरकारी अंग्रेजी अध्यापिका की सेवा देने रा ई का रीठाखाल,चम्पावत चली गई और 2017 तक साहित्य के संसार से दूर हो गई।

 2017 में मेरी पोस्टिंग जब खटीमा हुई तो वहाँ मुझे शैलेश मटियानी पुरस्कार प्राप्त डॉ महेंद्र प्रताप पांडेय" नंद" जी से मुलाकात करने का मौका मिला।

आपने मेरी कला और मेरी जिज्ञासा को देखते हुए मुझे आगे बढ़ायामुझे गाजियाबाद में राष्ट्रीय स्तर पर काव्य पाठ करने का मौका मिला और तब मुझे "युवा प्रतिभा सम्मान" ओर "नव सप्तक सम्मान" से सम्मानित किया गया। मेरी एक साझा पुस्तक नव सप्तक निकली। 

उसके बाद मैंने खटीमा में देखा कि डॉ रूपचंद शास्त्री "मयंक"जो कि एक महान लेखक है और लेखन के क्षेत्र में उनका नाम है वे नवोदित रचनाकारों को प्रोत्साहित करते हैं और उनके साथ मैंने लगभग 20 वर्ष पहले भी कई कवि सम्मेलन किये थे तो मैं उनसे मिली उन्होंने मेरी जिज्ञासा को देखते हुए मेरे रचनाओं को ठीक करना आरंभ किया। मेरे साहित्यिक गुरु बन कर मुझे लेखन के गुर बताए और उनके साथ रहकर के मेरा लेखन के प्रति और दोहों के प्रति मेरा रुझान बढ़ गया और  मैं आगे बढ़ने लगी।।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! आपके जीवन में ऐसी कोई घटना विशेष घटना जो प्रेरणादायक रही है और आप उसे गर्व से साझा करना चाहते हैं?* 

राधेगोपाल : विज्ञात जी! देखिये मैंआकाशवाणी जोधपुर में युववाणी” कार्यक्रम में  कंपेयरर थी। उस समय हमारे ऑफिसर श्री पार्थ सारथी थपलियाल जी का भी विशेष सहयोग मिला। इसके अलावा मैं आकाशवाणी जोधपुर में ही अनेक लघु कथा ,लेख और कवि सम्मेलन में प्रतिभाग करती रहती थी। मुझे शैलेश लोढ़ा जी जो उस समय जोधपुर में ही रहते थे के साथ भी काम करने का मौका मिला थाजो आजकल टीवी पर 'वाह वाह क्या बात हैऔर 'तारक मेहता का उल्टा चश्मामें आते हैं। यह मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है कि मैं उनके साथ काम कर चुकी हूँ।
अब वर्ष 2017 में गाजियाबाद में राष्ट्रीय स्तर पर काव्य पाठ करने करना और "युवा प्रतिभा सम्मान" और "नव सप्तक सम्मान" से सम्मानित होना मेरे लिए गौरव की बात थी।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! आपको क्या लगता है एक लेखक की कलम का उद्देश्य आत्मसुखाय चलना सही है या साहित्य और समाज कल्याण करते हुए ?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! एक लेखक की कलम का उद्देश्य साहित्य और समाज कल्याण के कार्य करना होना चाहिए। लेखनी में इतनी शक्ति होती है कि वह किसी भी कार्य को सिद्ध कर देती है। लेखक लिखते तो आत्म सुख के लिए ही हैलेकिन जब लेखनी समाज सुधार का बीड़ा भी उठा लेती है तो वह धन्य हो जाती है।

अब देखिए मैंने खटीमा की  टूटी फूटी सड़को गंदगी और कूड़े के ढेर  कोहेलमेट पहनना क्यों जरूरी है इसके अच्छे बुरे परिणाम मैंने सबसे पहले अपनी कविता के माध्यम से खटीमा की जनता तक अखबार के माध्यम से पहुँचाया था। 

मुझे ख़ुशी हुई जब सडकें ठीक हुई। कूड़ा गाडी घर घर से कूड़ा उठाने लगी। खटीमा शहर स्वच्छता की ओर बढ़ा और हेलमेट पर भी पुलिस का ध्यान गया। परिणाम स्वरुप मेरी जनता का जीवन सुरक्षित हुआ। कहीं ना कहीं समाज के कामों को हमारी लेखनी सशक्त करती है। खटीमा से प्रकाशित होने वाले अखबारों विशेष कर 'खटीमा मॉर्निंगऔर 'देव भूमि का मर्म आदि ने मुझे काफी सहयोग किया।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! आपकी रचनाओं में साहित्य की लुप्तप्राय समृद्ध शब्दावलियों के साथ-साथ आँचलिक भाषा का समन्वय मिलता हैआप इस पर क्या कहेंगी ?*

राधेगोपाल : इसका श्रेय तो मैं पूरी तरह से परम आदरणीय श्रीमान संजय कौशिक 'विज्ञात'जी को देती हूँजिन्होंने हमें केवल और केवल हिंदी साहित्य के प्रति जागृत किया।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! एक साहित्यकार के रुप में आपके मित्र और परिवार के लोग आपको कितना पंसद करते है ?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! जब हमारा नाम किसी क्षेत्र में होता है तो वह अपने परिवार और मित्रों के कारण ही होता है। मेरे मित्र तो बहुत खुश होते हैं। परिवार भी मेरे साथ में है विशेष रूप से मेरे बच्चे स्वाती और युगल का साथ और प्रोत्साहन मुझे हमेशा मिला । मेरे पतिदेव श्री गोपाल दत्त तिवारी जी का सहयोग सदा मुझे  मिला है क्योंकि एक पत्नी के लिए पति का साथ बहुत जरूरी है और उन्होंने कभी भी मेरे लेखन कार्य में रुकावट पैदा ना करके मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया है और उन्हीं के कारण मेरी पुस्तकें 'जीवन का भूगोल' (दोहा

संग्रह) और 'सृजन कुंज'( काव्य संग्रह) 'राधे की अंजुमन' (ग़ज़ल संग्रह)प्रकाशित हुई और आप सबके बीच में हैं।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रति आप क्या दृष्टिकोण रखते हैंआपके विचार से साहित्य को और समृद्ध बनाने के लिए क्या क़दम उठाया जाना चाहिए ?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! हिंदी साहित्य के प्रति मेरा दृष्टिकोण बिल्कुल ठीक है। मैं चाहती हूँ कि आने वाली पीढ़ी हिंदी के प्रति और सजग हो। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और राष्ट्रभाषा ही रहे। यह विलुप्त ना हो और हमें अपने प्रत्येक कार्य हिंदी में ही करनी चाहिए। इसके लिए हमें एक विशेष मुहिम चलानी चाहिए जिसमें सिर्फ और सिर्फ हिंदी का उत्थान हो।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! क्या अब तक आपकी कोई साहित्यिक पुस्तक प्रकाशित हुई है यदि छपी है तो उसके विषय में भी कुछ बताएं ?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! जी हाँ मेरी तीन एकल पुस्तकें अभी तक छपी है। "जीवन का भूगोल" (दोहा संग्रह), "सृजन कुंज"( काव्य संग्रह),"राधे की अंजुमन" (ग़ज़ल संग्रह),
 इसके अलावा से 7 (साझा संग्रह)हाइकू ,ये दोहे गूँजते से.. ये कुण्डलियाँ बोलती हैं ,गीत,कविताएँ  ,बाल कविताएं भी मेरे निकले हैं और अभी 7, 8 पुस्तकें मेरी प्रकाशित होने की कतार पर है।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! जो नए लेखक या कवि आ रहे हैं उनके लिए आपका दृष्टिकोणउनके लिए क्या सन्देश देना चाहेंगे ?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! नवोदित रचनाकारों से मेरा विनम्र निवेदन है कि वे लेखन में अपनी भाषा को स्पष्ट रखें ,शुद्ध हिंदी भाषा का प्रयोग करें,  बड़े लेखक और रचनाकारों की रचनाओं को पढ़ें ।

आप जितना पढ़ेंगे उतना ही आप अच्छा लिख पाएंगे। बुरे लेख से बचेंकटाक्ष नहीं करेंदेशद्रोह की बातें ना लिखिएह्रदय पर घात करने वाली शब्दों का प्रयोग ना करें। पढ़िए ज्यादा लिखिए कम ,जितना भी लिखें सोच समझकर सशक्त लिखें।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! हमारे लिए कोई दिशा निर्देश देना चाहें तो स्वागत है*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! आपको कुछ बोलना सूरज को दिया दिखने जैसा होगा।  
आप जो भी कार्य कर रहे हैं बहुत अच्छा कर रहे हैं ।हिंदी को बढ़ाने में आपका योगदान अमूल्य है। आपको और आपकी लेखनी कोआपकी भावनाओं को मैं शत-शत नमन करती हूँ आप यूँ ही विश्व पटल पर छाए रहे.....

राधा तिवारी "राधेगोपाल " , ( चित्रकार )

 चित्रकार

चित्रकार कागज पर लाया
अब तो अंबर के तारे
पेड़ वो लाया लंबे छोटे
और पुष्प प्यारे-प्यारे
उगता ढलता सूरज लाया
लाया जग की सब माया 
कहीं तिरंगा है लहराया
जन गण मन का मान बढ़ाया
ऐसे होते हैं चित्रकार
करते जो रंगों से प्यार

राधा तिवारी "राधेगोपाल " , चौपाई छंद ( विश्व पुस्तक दिवस)


विधा चौपाई छंद 
विषय विश्व पुस्तक दिवस

पुस्तक दिवस विश्व का आया 
पर इस पर भी विष मंडराया
सभी पुस्तकें पीड़ित होती
ईबुक में ही वह अब खोती

पुस्तक ने तो ज्ञान दिया है 
विद्वानों को मान दिया है
 जय जय जय हे पुस्तक माता 
तुम हो सबकी भाग्य विधाता 

जो जन पास तुम्हारे आता
उसको तो सब कुछ मिल जाता 
जो जन मन से तुम्हें पुकारे 
उसने पाए सदा सहारे

जग में है कितने ही ज्ञानी
महिमा उनकी सबने जानी
ब्रह्मा हैं वेदों के ज्ञाता
हनुमत हो संकट के त्राता

राधा तिवारी " राधेगोपाल " , दोहे ( छंद विज्ञात का)


 
छंद विज्ञात का

कलम पकड़ कर हाथ में, रचलो रचना आप।
दे देना आशीष ही,मत लिखना अभिशाप।।1।।

शब्दों का आधार ले,कर देना उपकार।
गीतों गजलों से करो, जन-जन का उद्धार।।2।।

लिखो छंद विज्ञात का, जग में करना नाम।
छंदों में आगे बढ़े,छंद यही अविराम।।3।। 

राधे ने तो लिख दिए, देखो दोहे पाँच।
साँच नहीं लाती यहाँ, कभी जगत में आँच।।4।।

राधे मुक्तक लिख रही, लिखती दोहे गीत।
हिंदी से बढ़ने लगी, देखो अब तो प्रीत।।5।।

कठिन राह को देखकर,मत रुक जाना आप।
संकट के तो काल में,करो राम का जाप।।6।।

 वृक्ष लगा कर कीजिए,कुछ तो अच्छे काज।
शुद्ध हवा बनती रहे , धरती पर सरताज।।7।।

काम क्रोध मद लोभ में, फँस  जाते जो लोग
 उनको तो मिलता रहे ,जाने कैसा रोग।।8।। 
 

Wednesday, 5 May 2021

राधा तिवारी "राधेगोपाल " , कविता (माँ की ममता)

माँ की ममता

माँ की ममता कभी किसी को समझ न आए 
माँ का प्यार यहाँ हरपल ईश्वर भी पाए 
बन कर ईश्वर लाल इसी धरती पर आते 
माता की ममता को वह भी तो हैं ललचाते  
खुश होकर के माँ लाल को सदा खिलाए 
बाहों के ही झूले में वो उसे झुलाए 
गीले मैं सोकर के माता खुश हो जाती
पर रोगों से बच्चे को वो सदा बचाती  
अपरंपार सदा होती है माँ की ममता
अब तक कोई जान न पाया उसकी क्षमता 

Tuesday, 4 May 2021

राधा तिवारी" राधेगोपाल " कविता (श्वांसों की डोरी)


श्वांसों की डोरी
दुनिया से भी ज्यादा माँ बच्चे को जाने 
नौ महीने तक बच्चा माँ को ही पहचाने 
श्वांसों की डोरी ही माँ से उसे जोड़ती 
उसकी हलचल सब माता का ध्यान मोड़ती
बच्चों को तो माँ ने इस तरह है पाला 
कहती चाँद सितारा चाहे गोरा काला
माँ उपवन का माली बच्चे सभी फूल है
सुखसागर देकर के छांटे सदा शूल है
 
बच्चे होते हैं माता की ही फुलवारी
माँ से ही तो बनती है यह दुनिया सारी
माँ ने थामा हाथ आई है जब भी विपदा 
बच्चों को दे दी अपनी सभी संपदा 
जीवन का आधार सदा होती है माता 
बिना माता के बच्चे को कोई समझ न पाता 

Sunday, 11 October 2020

दोहे अच्छा शिक्षक (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")





अच्छा शिक्षक 

शिक्षक से करना सदा ,अपने मन की बात 

अपने घटिया काम से ,देना मत आघात।।

 

अंग्रेजी को मान दोकेवल भाषा जान।

हिंदी का तो मत करो ,कभी कहीं अपमान ।।

  

पढ़ने से होता सदा ,शब्दों का विस्तार।

शब्दकोश बढ़ जाए तोहोता बेड़ा पार।।


वक्त सदा हर पाप का, करता है इंसाफ।
खुद से ही गर छल किया, फिर कौन करेगा माफ।।

कोरोना करने लगा, सबसे ही संग्राम।
हाथ पैर धो लीजिए, सब ही सुबहो शाम।।