जिसे मैं भूलना चाहूं वही एक याद बाकी है
चली हूँ जब डगर अपनी तुझे मुड़ मुड़ के देखा है
अभी तो आपकी हमको बहुत इमदाद बाकी है
जिसे मैं भूलना चाहूं वही एक याद बाकी है
सहारा बाह का मां-बाप को देते यहाँ बच्चे
जन्म भर पालते उनको यहाँ मर्याद बाकी है
जिसे मैं भूलना चाहूं वही एक याद बाकी है
बनाए हैं यहाँ रहने को सबने आशियां अपने
मगर सबकी यहाँ पक्की रही बुनियाद बाकी है
जिसे मैं भूलना चाहूं वही एक याद बाकी है
न जाना रूठ कर प्रियवर मना लूंगी तुम्हें आकर
राधा के तो धड़कन की अभी अनुनाद बाकी है
जिसे मैं भूलना चाहूं वही एक याद बाकी है
इमदाद मदद
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Friday, 7 September 2018
ग़ज़ल "फरियाद"( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
Thursday, 6 September 2018
राधे की परछाई ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
इसमें तू बता दे कि कितनी सच्चाई है
देख लूँ मैं ख्वाब में तुझ को करीब से
नैनों ने अब तो नींद की महफिल सजाई है
तू साथ है तो साथ में सारा जहान है
तेरे बिना भी इस जहां में क्या कमाई है
दुख ढो के मेरा है खुश भी आज दिल
हमने नए रिवाज की रस्में निभाई है
तू है मुझ में ,मैं हूँ तुझ में सब यह कह रहे हैं
रोशनी के साथ में राधे की परछाई है
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Wednesday, 5 September 2018
"अध्यापक दिन" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
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जीवन भर करते रहो, गुरुओं से संवाद।
अध्यापक दिन पर करें, हम गुरुओं को याद।।
द्वापर युग में हुए थे, शिक्षक द्रोणाचार्य।
राजकुमारों के लिए, किया उन्होंने कार्य।।
अध्यापक जब साथ हो, हो जाती है जीत।
मन में होनी चाहिए ,एकलव्य सी प्रीत ।।
चेलों के देता सदा, ज्ञान चक्षु को खोल ।
सतगुरु की बातें बहुत, होती है अनमोल।।
देता है जो जगत को, निशदिन निर्मल ज्ञान ।
पूजनीय होता गुरू ,जग मैं बहुत महान।।
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Tuesday, 4 September 2018
खुशबू उसी की है ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),
खुशबू उसी की है
जो बस गई है मुझ में वो खुशबू उसी की है
जो जी रही हूं जिंदगी वो भी उसी की है रहता है आसपास मेरे साथ में सदा खुलते हुए लबों की बंदगी उसी की है तड़पा है दिल सदा ही जिस ख्वाब के लिए सारा ही आसमान और जमी उसी की है हंसते हैं और रोते हैं, हम रात दिन तमाम रो करके जब हसे तो ये हंसी उसी की है सारे ही जग को घूमकर में देख आई हूँ सब कुछ मिला है पर एक कमी उसी की है आंखों में अश्क हमने छिपा करके रख लिए पलकों पर राधे आज नमी भी उसी की है |
Monday, 3 September 2018
दोहे "श्री कृष्ण भगवान" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
श्री कृष्ण भगवान
जन्मे कारागार में, मेरे को गोपाल।
माता उनकी देवकी, वो हैं नंद के लाल।।
असुरों का था वध किया, उसने बालक काल।
रूप अनेको दिख रहे, बन कर के विकराल ।।
मनुज रूप धारण किया, श्री कृष्ण भगवान।
असुरों को हल्कान कर किये मनुज एहसान।।
सिर पर धरकर टोकरा, उसमें रखकर लाल ।
वसुदेव जी जा रहे ,करके तेजी चाल।।
कान्हा तेरा नाम तो, लेता है संसार।
तुझको पाने के लिए, राधा है आधार ।।
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Sunday, 2 September 2018
ग़ज़ल "बचपना"( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),
बाग उपवन में सदा दिल को चहकने दीजिए
हो रही वर्षा छिपे हैं ताल में दादुर सभी
खेत और खलिहान में भी उनको मचलने दीजिए
गिर रहे हैं आज बच्चे सब नशे की गर्त में
जो संभलना चाहते हैं उनको संभलने दीजिए
बचपना ही तो जगत में है सवरने के लिए
टल रही है गर जवानी तो उसको टलने दीजिए
नींद में मदमस्त होकर सो रहे राधे सभी
उन सभी के ख्वाब तो ऐसे ही पलने दीजिए
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