Thursday, 30 April 2020

दोहे छंद , *मृगतृष्णा* " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),


*मृगतृष्णा*
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मृगतृष्णा सा डोलते, रहे जगत में आप।
शीतलता लगने लगी, सबको ही अब ताप।।1।।

आज किसी इंसान में, नहीं रही अब धीर।
लड़ने को आतुर सभी, जैसे हो रणवीर।।2।। 

बात सहन करते नहीं,आज किसी के लाल। 
यही समय का फेर है, कहता है यह काल।।3।।

चलें आप हम साथ में, करें जगत में नाम।
मृगतृष्णा को छोड़कर ,करले अच्छे काम।।4।।

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2 comments:

  1. मृगतृष्णा से डोलते...
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    नहीं रहा अब धीर...
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    करलो अच्छे काम...
    ---
    बाकी सही।

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