सदाबहार गीतों
का अनूठा संग्रह
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी से मेरा परिचय 26-27
वर्ष पुराना है।
उस समय आपके आवास पर कविगोष्ठी में मैंने भी अपना काव्य पाठ किया था। मेरा चयन राजकीय विद्यालय में अंग्रेजी अध्यापिका के रूप में हो गया और मेरी नियुक्ति पर्वतीय क्षेत्र में हो गयी। विगत वर्ष में मेरा स्थानान्तरण खटीमा के निकट राज. उ. मा. विद्यालय, सबौरा में हो गया और पुराने साहित्यकारों से फिर से मिलना-जुलना होने लगा। मयंक जी को सदैव मैंने एक सत्गुरू की दृष्टि से देखा है और अपना साहित्यिक गुरू मान लिया है, जो नये-पुराने लेखकों कवियों की रचनाओं को निःस्वार्थभाव से शुद्ध करने में संलग्न रहते हैं।
अब तक आपकी आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और नौवीं कृति के रूप
में “प्रीत का व्याकरण” नामक गीत संग्रह प्रकाशित होने जा रहा है। मुझे
जब भी समय मिलता है मैं आपके आवास पर आकर आपको सदैव कम्प्यूटर पर कुछ न कुछ लिखते
हुए देखती हूँ। आपको कम्प्यूट में विशेष महारत प्राप्त है और हिन्दी ब्लॉगिंग के
तो आप पुरोधा माने जाते हैं। “उच्चारण” आपका मुख्य
ब्लॉग है जिसमें आप नियम से प्रतिदिन अपनी एक नवीन रचना पोस्ट करते हैं।
आप अपनी सभी पुस्तकों का सम्पादन और डिजाइन स्वयं ही करते हैं। मैंने
“प्रीत का व्याकरण” के सभी गीत आपके कम्प्यूटर पर पढ़े हैं। जो गीत
के शिल्प पर सर्वथा खरे उतरते हैं तथा हृदयग्राही भी हैं। मुझ जैसे बहुत से लोगों
को इन गीतों से लेखन की प्रेरणा काव्य शिल्प को सीखने का अवसर मिलता है। प्रीत का
व्याकरण काव्य संग्रह में आपका निम्न गीत ही इसकी सार्थकता को सिद्ध करने में
सक्षम है।
"घूमते शब्द कानन में उन्मुक्त से,
जान पाए नहीं प्रीत का व्याकरण।
बस दिशाहीन सी चल रही लेखनी,
कण्टकाकीर्ण पथ नापते हैं चरण।।
ताल बनती नहीं,राग
कैसे सजे,
बेसुरे हो गए साज संगीत हैं।
ढाई आखर बिना है अधूरी ग़ज़ल,
प्यार के बिन अधूरे प्रणय गीत हैं।
नेह के स्रोत सूखे हुए गाँव में,
खो गया देश में आजकल आचरण।
कण्टकाकीर्ण पथ नापते हैं चरण।।"
मैं आपकी इस कृति की लोकप्रियता के लिए शुभकामनाएँ व्यक्त करती हूँ
और समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय होगा। आपके दीर्घ जीवन की कामना करते हुए,
आशा
करती हूँ कि “प्रीत का व्याकरण” ऊँचाइयों के समस्त मानकों को पार करेगा।
राधा तिवारी राधेगोपाल
अंग्रेजी अध्यापिका
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, सबौरा (खटीमा)
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Wednesday, 22 April 2020
सदाबहार गीतों का अनूठा संग्रह “प्रीत का व्याकरण” (राधा तिवारी " राधेगोपाल " ),
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आभार आदरणीया राधातिवारी जी।
ReplyDeleteगुरुदेव आपकी पुस्तकें यूँ ही प्रकाशित होती रहे
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