आया
आया है अब बाग में, शीतल मृदुल बसंत। मेरे तो परदेस को, गए हुए हैं कंत। गए हुए हैं कंत, न जाने कब आएंगे। मुझको ये मधुमास सखी कैसे भाएंगे। कह राधेगोपाल, मुझे तो कुछ ना भाया। शीतल मृदुल बसंत, धरा पर जब से आया।।
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