Sunday, 11 October 2020

दोहे अच्छा शिक्षक (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")





अच्छा शिक्षक 

शिक्षक से करना सदा ,अपने मन की बात 

अपने घटिया काम से ,देना मत आघात।।

 

अंग्रेजी को मान दोकेवल भाषा जान।

हिंदी का तो मत करो ,कभी कहीं अपमान ।।

  

पढ़ने से होता सदा ,शब्दों का विस्तार।

शब्दकोश बढ़ जाए तोहोता बेड़ा पार।।


वक्त सदा हर पाप का, करता है इंसाफ।
खुद से ही गर छल किया, फिर कौन करेगा माफ।।

कोरोना करने लगा, सबसे ही संग्राम।
हाथ पैर धो लीजिए, सब ही सुबहो शाम।।





Sunday, 5 July 2020

दोहे , जीवन की पतवार" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),


जीवन की पतवार

 राज सभी पर कर रहाएक विदेशी रोग।
डरे डरे से हैं सभीसकल विश्व के लोग।।

राधे लो संकल्प कोरह लेना निज धाम।
रोग बड़ा गंभीर हैकोरोना है नाम।।

चूक अगर थोड़ी हुई फैलेगा यह रोग।
हाथ मिलाना छोड़ दोदूर रहो सब लोग।।

हाथ जोड़कर कीजिएसबका ही सत्कार।
कोरोना करता नहीं ,इन पर कभी प्रहार ।।

साफ सफाई का रखो,, राधे हरदम ध्यान ।
हाथ मिलाने से करे ,कोरोना नुकसान ।।

हाथ सौंप दो ईश केजीवन की पतवार।
आसानी से राधिकाहो जाओगे पार।।

डरो नहीं इस रोग सेहो जाओ तैयार।
रहो अकेले शान सेहोगा इस पर वार ।।


घर पर ही सब बैठ करले लो हरि का नाम ।
राधे ने सबको दियाएक यही पैगाम ।।


घर में रहने से नहींलगता कोई पाप।
इससे तो घटता सदाकोरोना का ताप ।।

करना है गर आपकोकोरोना को चूर।
कुछ दिन तो रहे लीजिएअपनों से तुम दूर ।।

कोरोना के नाम सेआया कैसा रोग।
माता तुम भी ध्यान दोडरते सारे लोग।।

गाँव घरों को आ रहेहैं विदेश से लोग।
फिर क्यों अपने देश में ,रहे विदेशी रोग।।

Wednesday, 17 June 2020

*मनहरण घनाक्षरी* , *आँसू* " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),

 *आँसू*
jansatta column duniya mere aage on World of tears - आंसुओं ...
आँसू ही बताते यहां 
मिलना बिछड़ना भी।
बेटी की विदाई में ये
 पिता को सताते हैं ।

प्यार मनुहार में ये
क्रोध अहंकार में ये।
पलकों से गिर गिर
भेद को छिपाते हैं ।

आँसू की अनोखी बात
चाहे दिन हो या रात ।
सुख दुख घड़ियों को
साथ ही बिताते हैं।

हार जीत प्रेम प्रीत
दुश्मन और मीत।
बिना भेद किए ही ये
आँख पे बिठाते हैं।


Tuesday, 16 June 2020

*मनहरण घनाक्षरी* , श्रमिक " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),

श्रमिक  

चर्चामंच: "कर दिया क्या आपने" (चर्चा ...
आँचल में बाँधे बाल
धूप से है मुँह लाल
ऐसी माता के राहों में
फूल तो बिछाइए

श्रम का मिले न दाम
नार करती है काम
थकी हारी नार को तो
 दाम तो दिलाइए

मजदूरी करती है
पेट सब भरती है
बेसहारा नार को भी
काम पे लगाइए

दुखी नहीं होती है ये
ईंट ईंट ढोती है ये
अबला के जीवन से 
 शूल भी हटाइए


Monday, 15 June 2020

दोहे , बंद करो सब द्वार " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),

बंद करो सब द्वार 

घर में ही सब बैठ कर, कर लो मन की बात।
कोरोना को तब चले, पता अपनी औकात।।

बोल रही है आज तो,धरती पर मेवाड़।
अब मुझको अच्छे लगे, खिड़की और किवाड़।।

अपने ही घर में रहो ,बंद करो सब द्वार ।
अपना ही परिवार है, अपना ही संसार।।

मिलती है छुट्टी नहीं, इतनी तो सरकार।
 परिवार के साथ में, रह लो हर दिन बार।।

तन की दूरी ही रखो, मन से रहना पास।
 कभी तोड़ मत दीजिए, अपनों का विश्वास।।


Sunday, 14 June 2020

दोहा छंद , मैं नारी मर्दानी " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),


मैं नारी मर्दानी


भेद नहीं करना कभी, अबला सबला बोल।
मैं मर्दानी नार हूँ, मैं तो हूँ अनमोल।।1।।

पूरी होगी कामना, बेटी को दो मान।
नारी ही हरदम बनी, भारत की पहचान।।2।।

घूँघट की अब आेट को, हटा रही है नार।
नभ में भी वो उड़ रही, करती  सागर पार।।3।।

लक्ष्मी बाई की तरह, उठा रही शमशीर।
अपने हाथों खुद वही, बना रही तकदीर।।4।।

बदल रही है नार तो,अब अपनी तस्वीर।
देखो तो हर क्षेत्र में, फिरती बनकर वीर।।5।।

Sunday, 31 May 2020

दोहे ,संकल्प " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),


संकल्प 
Coronavirus In Punjab: 11 New Coronavirus Positive Cases Found In ...
राधे लो संकल्प को, रह लेना निज धाम।
रोग बड़ा गंभीर है, कोरोना है नाम।।

चूक अगर थोड़ी हुई , फैलेगा यह रोग।
हाथ मिलाना छोड़ दो, दूर रहो सब लोग।।

हाथ जोड़कर कीजिए, सबका ही सत्कार।
कोरोना करता नहीं ,इन पर कभी प्रहार ।।

साफ सफाई का रखो,, राधे हरदम ध्यान ।
हाथ मिलाने से करे ,कोरोना नुकसान ।।

हाथ सौंप दो ईश के, जीवन की पतवार।
आसानी से राधिका, हो जाओगे पार।।

डरो नहीं इस रोग से, हो जाओ तैयार।

रहो अकेले शान से, होगा इस पर वार ।।

Saturday, 30 May 2020

गीत , चलता जाता है मजदूर " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),


 चलता जाता है मजदूर



पथरीली पटरी को चुनता 
सुलभ सड़क को छोड़ रहा है
काम नहीं अब करना उसको 
रुख वो घर को मोड़ रहा 
तन मन से वह थका हुआ है 
लौट रहा होकर मजबूर
चलता जाता है मजदूर।।

कदम द्वार की चौखट तक भी 
अब वह नहीं रख पाता है 
चलते-चलते थका मुसाफिर 
घर आकर मर जाता है 
भूखा ही वह लौट रहा है 
देखो तो होकर मजबूर 
चलता जाता है मजदूर।।

सोशल डिस्टेंस के कारण 
वह तो पैदल चलता है 
अपने ही घर में अब मानव 
अपनों को ही खलता है 
कंटीली झाड़ी में तो अब 
वो है चलने को मजबूर 
चलता जाता है मजदूर।।

कहता है यह रोग जगत में 
हाथ मिलाना पाप हुआ 
खोल मुँह को बातें करना 
भी अब तो अभिशाप हुआ
जूझ रहा इस रोग से अब तो
सारा जग होकर मजबूर
चलता जाता है मजदूर।।

कहीं पड़ी लाठी व डंडे 
सीमा पर भी वार हुआ 
कभी बाँध बच्चे को काँधे 
पापा भी लाचार हुआ 
जंगल जंगल चलता जाता 
देखो वह होकर मजबूर
चलता जाता है मजदूर।।

तनिक नहीं विश्राम कर रहा 
चाहे थक कर हो वह चूर
जीने की है उसे लालसा 
वो भी अब होता मगरूर
बढ़ता जाता है वह देखो
 हँसता हँसता हो मजबूर
चलता जाता है मजदूर।।

वाहन उसको नहीं चाहिए 
चाहे पैर पे छाले हो
अपने घर को लौट रहे 
हैं 
छीन गए आज निवाले हो
अपनी धुन में चलता जाता 
फिर भी हो करके मजबूर
चलता जाता है मजदूर।