श्रमिक
आँचल में बाँधे बाल धूप से है मुँह लाल ऐसी माता के राहों में फूल तो बिछाइए श्रम का मिले न दाम नार करती है काम थकी हारी नार को तो दाम तो दिलाइए मजदूरी करती है पेट सब भरती है बेसहारा नार को भी काम पे लगाइए दुखी नहीं होती है ये ईंट ईंट ढोती है ये अबला के जीवन से शूल भी हटाइए |
श्रम का मिले न दाम
ReplyDeleteनार करती है काम
थकी हारी नार को तो
दाम तो दिलाइए
सोच में डालने वाली रचना
साझा करने के लिए आभार