कर सोलह श्रँगार
बिंदिया कुमकुम से सदा, चमक रहा है भाल।
नथनी झूले नाक में, गले स्वर्ण की माल।।
कुंडल सजते कान में, होठ लाल ललचाय।
गोरी खुद को आज तो, देख देख मुस्काए।।
तन पर यौवन है चढ़ा, मन उसक इठलाय।
खुद में गोरी सिमटती, जब साजन मिल जाय।।
कंगन हाथों के कहे, पिया सुनो ये बात।
खनक रही क्यों चूड़ियाँ , जब होती है रात ।।
हौले से जब पग रखूं , पायल करती शोर।
तक धड़कन को थाम कर, आती तेरी ओर।।
नख में लाली है सजी, बिछिया रहती मौन ।
आंचल लहरा के कहे, मेरे प्रियतम कौन।।
मात-पिता की लाडली, प्रियतम का हूं प्यार।
महल पिया के जाऊंगी, कर सोलह श्रँगार।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-10-2019) को "भइया-दोयज पर्व" (चर्चा अंक- 3503) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में गोवर्धनपूजा की
हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'