जीवन नैया
तुम कान्हा हो मैं हूँ राधा।
मेरा जीवन तुम बिन आधा।।
दूर अगर चाहोगे जाना।
फिर मुश्किल है हम को पाना ।।
बंधी तुम्हीं से जीवन डोर ।
खींच रही जो तेरी ओर।।
तुमसे जीवन में उजियारा ।
चहूं ओर तुम बिन अंधियारा ।।
तुमसे मेरी जीवन नैया।
तुम बन बैठे हो खेवैया ।।
तुम राधा के तारणहार ।
कर दो कान्हा भव से पार।।
|
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (18-04-2019) को "कवच की समीक्षा" (चर्चा अंक-3309) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'