Monday, 15 April 2019

कविता. " पंछी " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


पंछी 
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 उड़ने की शक्ति दे कर केपंछी एक बनाया है।
 सुंदर-सुंदर पंखों से फिरउसको खूब सजाया है।

 नील गगन में उड़ता है फैला कर के अपने पर
चिहुँक चिहुँक कर शोर मचाता वह पंछी तो स्वर भरकर

रङ्ग बिरंगा उड़ता पंछी सबके मन को भाया है
उसने प्यारी बोली से सबको खूब लुभाया है

 कभी बैठते छज्जों पर वो कभी हवा  में इठलाते
कभी वो उड़ते नील गगन में कभी धरा पर बल खाते

 उसने प्यारी बोली से सबको खूब लुभाया है
 उड़ने की शक्ति दे कर के पंछी एक बनाया है

 पिता बनाने एक घोंसला तिनके चुन चुन लाता है
अपनी  पैनी नजरों से दुश्मन को मार भगाता है

अंडे देकर माता ने सबसे उन्हें बचाया है
 उड़ने की शक्ति दे कर के पंछी एक बनाया है

 आंगन में आता जब पंछी हम सब खुश हो जाते हैं
बच्चे उनको  देख देखकर हरदम ही  हर्षाते हैं

 चलता फिरता एक खिलोने रब ने खूब रचाया है
 उड़ने की शक्ति दे कर के पंछी एक बनाया है

3 comments:

  1. पंछी परिंदे ... ये सब जीवन से जुड़े हैं और इनका होना वरदान है इंसान के लिए ...
    सुन्दर रचना है बहुत मनभावन ...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-04-2019) को "तुरुप का पत्ता" (चर्चा अंक-3307) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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