Wednesday, 17 April 2019

बाल कविता, " छोड़ो बिस्तर और रजाई " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


छोड़ो बिस्तर और रजाई
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जब नभ में सूरज है आता।
जाने कहाँ चन्द्र छिप जाता।
 पंछी छोड़ घोसलें आते।
 नभ में उड़ कर खुश हो जाते।।
 बच्चे भरते हैं किलकारी ।
वो लगती  है कितनी प्यारी ।।
नीरवता कुल रात समाई।
किन्तु धरा भी है मुसकाई।।
 माँ ने अब आवाज़ लगाई।.
छोड़ो बिस्तर और रजाई।
 दिन में करना पूरे काम।
 रातों को लेना विश्राम।।

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