Friday, 26 April 2019

बाल कविता, " हाथी और चींटी " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


हाथी और चींटी 
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भीम काय होता है हाथी और बहुत नन्ही है चींटी 
हाथी से सब डरते रहते चींटी है सबने पीटी

हाथी के हैं कान निराले 
जाने उसने कैसे पाले 
चींटी तो है नन्हा प्राणी 
नही सुनी है उसकी वाणी 

गज पर हाथ लगा नही सकते पर्पकड़ के छित्ती खींची 
भीम काय होता है हाथी और बहुत नन्ही है चींटी 

टनों का खाना खाता हाथी 
महावत होता उसका साथी 
चींटी कण से ही पलती है 
लगातार ही वो चलती है

गुड का दान दिया हाथी को चींटी अतत देकर सींची 
भीम काय होता है हाथी और बहुत नन्ही है चींटी 

Wednesday, 24 April 2019

कविता, मैं चंदा तू मेरी चकोरी ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


  मैं चंदा तू मेरी चकोरी
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राधे की बिंदी और पायल।
 कान्हा को करती है घायल।।

 क्यों इनको तुम झनकाती हो।
 मंद मंद क्यों मुस्कुराती हो।।

 तेरी मेरी प्रीत पुरानी ।
कभी ना कहना इसे कहानी।।

 तुमने कि इस दिल की चोरी।
 मैं चंदा तू मेरी चकोरी।।

 पास मेरे तुम सदा ही रहना।
 सुख दुख अपने हमको कहना।।

 मेरे दिल में रहती हो तुम ।
मुझको अच्छी लगती हो तुम।।

 तुममें मैं हूँ मुझ में तुम हो ।
फिर जाने क्यों तुम गुमसुम हो।।

Monday, 22 April 2019

बाल कविता, "रवी " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


बाल कविता
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रवी तुम्हारा इंतजार ।
कर रहा सारा संसार।।
 लगते हो तुम सबको प्यारे।
 नभ मे हो तुम सबसे न्यारे।।
 आसमान में जब आते हो।
 धरा में किरणें बिखराते हो।।
 जो भी दर्श तुम्हारा पता ।
नई उर्जा तुमसे पाता ।।
पक्षी  कलरव करने लगते।
 इंसान तुमको देख कर जगते।।
 बीत गई अब काली रात।
 अब कर लो सब काम की बात।।

Saturday, 20 April 2019

कविता, " मात- पिता के ऋणी रहेंगे " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


 मात- पिता के ऋणी रहेंगे
 मात- पिता के ऋणी रहेंगे।
 उनका आदर सदा करेंगे ।।

दुनिया है दिखलाइए हम को।
 लेकर मेरे सारे गम को।।

 अपनी दुनिया हमें बताया।
 हम को दे दी अपनी छाया ।।

बनकर के सबके भगवान ।
सबको देते जीवनदान।।

 अपने सारे दुख छिपाते।
पर हम पर खुशियां बरसाते ।।

नहीं सरिखा तुमसा जग में ।
फूल आप दिखलाते मग में ।।

राधा है अनुयाई हरदम ।
जीवन में मत देना गम।।

Friday, 19 April 2019

कविता, बगिया के मालिक राधा तिवारी "राधेगोपाल "


बगिया के मालिक
पत्थर ईट सीमेंट से मिलकर
 खड़ी करी दीवार कई
सख्त बहुत होती वह लकड़ी
 जिससे चौकट बनी भई

और बड़ा सा एक है आंगन
 जिसमें रसोई और शौचालय है
 चिमनी ओरी और धरा से
 बना हुआ ये आलय है

 अब मेरे घर को तुम देखो
जिसमें हम सब रहते हैं
 प्यार बांटते एक दूजे को
 सुख दुख सबके सहते हैं

 मात-पिता
 हम बगिया के फूल है
हमसे है घर में उजियारा
 लड़ना सदा फिजूल है

Wednesday, 17 April 2019

कविता. " जीवन नैया " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


 जीवन नैया

 तुम कान्हा हो मैं हूँ राधा।
 मेरा जीवन तुम बिन आधा।।

 दूर अगर  चाहोगे जाना।
 फिर मुश्किल है हम को पाना ।।

बंधी तुम्हीं से जीवन डोर ।
खींच रही जो तेरी ओर।।

 तुमसे जीवन में उजियारा ।
चहूं ओर तुम बिन अंधियारा ।।

तुमसे मेरी जीवन नैया।
 तुम बन बैठे हो खेवैया ।।
तुम राधा के तारणहार ।
कर दो कान्हा भव से पार।।

बाल कविता, " छोड़ो बिस्तर और रजाई " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


छोड़ो बिस्तर और रजाई
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जब नभ में सूरज है आता।
जाने कहाँ चन्द्र छिप जाता।
 पंछी छोड़ घोसलें आते।
 नभ में उड़ कर खुश हो जाते।।
 बच्चे भरते हैं किलकारी ।
वो लगती  है कितनी प्यारी ।।
नीरवता कुल रात समाई।
किन्तु धरा भी है मुसकाई।।
 माँ ने अब आवाज़ लगाई।.
छोड़ो बिस्तर और रजाई।
 दिन में करना पूरे काम।
 रातों को लेना विश्राम।।