Saturday, 19 May 2018

इंतजार(राधा तिवारी " राधेगोपाल")




 इंतजार


दिल के फासलों को दूर करना ही पड़ेगा l 
कुछ हमें कुछ तुम्हें चलना ही पड़ेगा 

 काम कोई भी मुश्किल नहीं इस जहान में 
कोशिशें करके संभलना ही पड़ेगा 

सूरज चंदा गगन में आते जाते रहेंगे 
रौशनी के दिये को जलना ही पड़ेगा 

 इंतजार करते-करते थक गई मेरी आंखें 
जीवन में जीना है तो बदलना ही पड़ेगा 

 गुमसुम सा हो कर बैठना अच्छा नहीं जग में 
दुखी मन को भी राधे बहलना ही पड़ेगा 



Friday, 18 May 2018

ग़ज़ल "यहाँ गुलशन सजाना है" (राधा तिवारी "राधेगोपाल" )

गुलशन
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मुझे है आज यह चिंता, के घर कैसे बनाना है।
वतन के वास्ते हमको, यहाँ सब कुछ लुटाना है।

 गरीबों की हुई मुश्किल, बढ़ी महँगाई है इतनी ।
गरीबों को नहीं मिलता, सही खाना खजाना है।

उठे किलकारियां घर में, महक जाए चमन अपना।
कली फूलों से अब हमको, यहाँ गुलशन सजाना है।।

हमें यह पूछना है, कामगारों से जमाने के।
 फरेबी है जगत कैसे, यहाँ नेकी कमाना है।।

 बताते हैं बड़े हमको, कि ईश्वर हम में रहता है ।
यही चिंता है राधे को, किसे इंसा बताना है।।

मेरा गुलशन (राधा तिवारी "राधेगोपाल" )




मेरा गुलशन



 
गर्मी झुलसा रहीं सबका कोमल.कोमल तन।
जल जायेगा इस गरमी से मेरा गोरा आज बदन।।

स्वेद विन्दुओं से सींचा था मैंने जिस पेड़ को।
आज सूखता ही जाता है हरा.भरा मेरा गुलशन।।

कल तक तो था हरा भरा हँसता.खिलता रहता था।
आज बगीचे की हर शाखा.पत्ते करें रुदन।।

घर को कूलर चला.चला कर हमने शीतल कर डाला।
किन्तु नहीं ठंडा होता है मेरे मन का आज सदन।।

ढूँढ रहीं मेरी दो अँखियाँ पल.पल अपने साजन को।
राधे को तो सदा चाहिए अपने मोहन.श्याम.मदन ।।

Thursday, 17 May 2018

"दायरे" (राधा तिवारी 'राधेगोपाल')

नभ से बादल सभी आज छटने लगे।
देखो जंगल से भी पेड़ कटने लगे।
   चौड़ी होती गई अब तो सँकरी सड़क
दायरे तो दिलों के सिमटने लगे।
 कोकिला पड़ गई देखकर सोच में
 सुर सजाएँ कहाँ पेड़ घटने लगे।
 अब समय है कहाँ बालकों के लिए
काम पर मां-बाप खटने लगे।
 आज इंसानियत का न मतलब कोई
 दिल तो राधे के भी आज फटने लगे।।


Tuesday, 15 May 2018

"मिटठू" राधा तिवारी ' राधेगोपाल '

मिट्ठू

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इक प्यारा सा तोता, देखा आज बगीचे में।
मिट्ठू-मिट्ठू बोल रहा था, तोता खूब दलीचे में।l

उड़ा तभी वह हरियल तोता, गया सहेली लाने।
और साथ में हरी मिर्च भी, लाया सँग में खाने।।

बैठ गये दोनों फिर मिलकर, करते बातें मतवाली।
पंजों से कसकर दोनों ने, पकड़ी शाखा हरियाली।।

खाने लगे चाव से दोनों, हरी मिर्च वो मोटी।
एक ने उसकी पूँछ पकड़ ली, और दूसरे ने चोटी।।

मिर्ची के दानों को खातेमिट्ठू-मिट्ठू कहते।
दुनिया उनको नहीं सुहाती , खुद अपने में गुम रहते ।।

हरा भरा था पेड़ बाग में , हरे-हरे थे उनके पर।
हरी मिर्च खा-खाकर, उड़ते थे दोनों नभ में फर-फर।।

राधे के मन को भाती है,मिट्ठू की बोली प्यारी
तोते के आते ही हो जाती, रौशन बगिया सारी।।

Monday, 14 May 2018

"मयंक का गीत-मेरी आवाज" (राधा तिवारी 'राधेगोपाल')

खटीमा में यूटोपियन सोसाइटी का सीमान्त साहित्य उत्सव धानी रिजॉर्ट्स में 'मैं और मेरी आवाज 'के अंतर्गत जाने माने कवि और आठ पुस्तकों के रचयिता डॉ.रुपचन्द्र शास्त्री मयंक जी के गीत "सहते हो सन्ताप गुलमोहर!
फिर भी हँसते जाते हो" को  गाने का सौभाग्य मिला।
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सहते हो सन्ताप गुलमोहर!
फिर भी हँसते जाते हो।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अपना “रूप” दिखाते हो।।

ताप धरा का बढ़ा मगर,
गदराई तुम्हारी डाली है,
पात-पात में नजर आ रही,
नवयौवन की लाली है,
दुख में कैसे मुस्काते हैं,
सबक यही सिखलाते हो।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अपना “रूप” दिखाते हो।।

गरमी और पसीने से,
जब कोमल तन अकुलाते हैं,
पथिक तुम्हारी छाया में तब,
पल-दो पल सुस्ताते हैं,
जब-जब सूरज आग उगलता,
तब तुम खिलते जाते हो।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अपना “रूप” दिखाते हो।।

योगी और तपस्वी जैसा,
ज्ञान कहाँ से पाया है?
तपकर तप करने का,
निर्मल भाव कहाँ से है?
सड़क किनारे खड़े हुए,
तुम सबको पास बुलाते हो।
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अपना “रूप” दिखाते हो।।

अरुणलालिमा जैसा तुमने,
अपना भेष बनाया है,
प्यारे-प्यारे फूलों से,
सबका ही मन भरमाया है,
लालरंग संकेत क्रोध का,
मगर प्यार दिखलाते हो?
लू के गरम थपेड़े खाकर,
अपना “रूप” दिखाते हो।।

"सृजनहार" दोहे राधा तिवारी" राधेगोपाल "



सृजनहार  

साहस से अपनी चले, नारी सीधी चाल l
 सागर की लहरें सदा, लाती है भूचाल ll

जीवन के हर क्षेत्र , करती रही कमाल l
 लेकिन दुनिया नारि पर, करती सदा सवाल ll

कदम जो नारी के बढे, दुनिया करे बवाल l
कौशल से है काटती, नारी सारे जाल ll

 कंधे से कंधा मिला, नारी करती काम l
 नारी के तो भाग्य में, नहीं लिखा आराम ll

प्यार और सद्भाव से, भरी है हर एक नार l
नारी ही संसार की, होती सृजनहार ll

महिलाओं पर हो रहा, नित ही अत्याचार l
 हो करके गंभीर तुम, करना जरा विचार ll

दुर्गा के जैसे यहां ,  नारी के नौ रूप l
कैसे भी हालात हो, बन जाती अनुरूप ll

 नारी के दिल से कभी, करना मत खिलवाड़ l
 नर को देती है सदा, नारी सदा पछाड़ ll

 नारी को देना सदा, कदम-कदम पर मान l
 भूले से भी नारि का, करना मत अपमान  ll

 नारी का होता सदा,  सुंदर सरल सुभाव  l
नारी का करते रहो, मन से आदर भाव ll