विधा चौपाई छंद विषय विश्व पुस्तक दिवस पुस्तक दिवस विश्व का आया पर इस पर भी विष मंडराया सभी पुस्तकें पीड़ित होती ईबुक में ही वह अब खोती पुस्तक ने तो ज्ञान दिया है विद्वानों को मान दिया है जय जय जय हे पुस्तक माता तुम हो सबकी भाग्य विधाता जो जन पास तुम्हारे आता उसको तो सब कुछ मिल जाता जो जन मन से तुम्हें पुकारे उसने पाए सदा सहारे जग में है कितने ही ज्ञानी महिमा उनकी सबने जानी ब्रह्मा हैं वेदों के ज्ञाता हनुमत हो संकट के त्राता
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Thursday, 6 May 2021
राधा तिवारी "राधेगोपाल " , चौपाई छंद ( विश्व पुस्तक दिवस)
राधा तिवारी " राधेगोपाल " , दोहे ( छंद विज्ञात का)
छंद विज्ञात का कलम पकड़ कर हाथ में, रचलो रचना आप। दे देना आशीष ही,मत लिखना अभिशाप।।1।। शब्दों का आधार ले,कर देना उपकार। गीतों गजलों से करो, जन-जन का उद्धार।।2।। लिखो छंद विज्ञात का, जग में करना नाम। छंदों में आगे बढ़े,छंद यही अविराम।।3।। राधे ने तो लिख दिए, देखो दोहे पाँच। साँच नहीं लाती यहाँ, कभी जगत में आँच।।4।। राधे मुक्तक लिख रही, लिखती दोहे गीत। हिंदी से बढ़ने लगी, देखो अब तो प्रीत।।5।। कठिन राह को देखकर,मत रुक जाना आप। संकट के तो काल में,करो राम का जाप।।6।। वृक्ष लगा कर कीजिए,कुछ तो अच्छे काज। शुद्ध हवा बनती रहे , धरती पर सरताज।।7।। काम क्रोध मद लोभ में, फँस जाते जो लोग उनको तो मिलता रहे ,जाने कैसा रोग।।8।। |
Wednesday, 5 May 2021
राधा तिवारी "राधेगोपाल " , कविता (माँ की ममता)
माँ की ममता
माँ की ममता कभी किसी को समझ न आए
माँ का प्यार यहाँ हरपल ईश्वर भी पाए
बन कर ईश्वर लाल इसी धरती पर आते
माता की ममता को वह भी तो हैं ललचाते
खुश होकर के माँ लाल को सदा खिलाए
बाहों के ही झूले में वो उसे झुलाए
गीले मैं सोकर के माता खुश हो जाती
पर रोगों से बच्चे को वो सदा बचाती
अपरंपार सदा होती है माँ की ममता
अब तक कोई जान न पाया उसकी क्षमता
Tuesday, 4 May 2021
राधा तिवारी" राधेगोपाल " कविता (श्वांसों की डोरी)
श्वांसों की डोरी
दुनिया से भी ज्यादा माँ बच्चे को जाने
नौ महीने तक बच्चा माँ को ही पहचाने
श्वांसों की डोरी ही माँ से उसे जोड़ती
उसकी हलचल सब माता का ध्यान मोड़ती
बच्चों को तो माँ ने इस तरह है पाला
कहती चाँद सितारा चाहे गोरा काला
माँ उपवन का माली बच्चे सभी फूल है सुखसागर देकर के छांटे सदा शूल है
बच्चे होते हैं माता की ही फुलवारी माँ से ही तो बनती है यह दुनिया सारी
माँ ने थामा हाथ आई है जब भी विपदा
बच्चों को दे दी अपनी सभी संपदा
जीवन का आधार सदा होती है माता बिना माता के बच्चे को कोई समझ न पाता
Sunday, 11 October 2020
दोहे अच्छा शिक्षक (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")
अच्छा शिक्षक शिक्षक से करना सदा ,अपने मन की बात । अपने घटिया काम से ,देना मत आघात।।
अंग्रेजी को मान दो, केवल भाषा जान। हिंदी का तो मत करो ,कभी कहीं अपमान ।। पढ़ने से होता सदा ,शब्दों का विस्तार। शब्दकोश बढ़ जाए तो, होता बेड़ा पार।। वक्त सदा हर पाप का, करता है इंसाफ। खुद से ही गर छल किया, फिर कौन करेगा माफ।। कोरोना करने लगा, सबसे ही संग्राम। हाथ पैर धो लीजिए, सब ही सुबहो शाम।। |
Sunday, 5 July 2020
दोहे , जीवन की पतवार" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),
डरे डरे से हैं सभी, सकल विश्व के लोग।।
राधे लो संकल्प को, रह लेना निज धाम।
रोग बड़ा गंभीर है, कोरोना है नाम।।
चूक अगर थोड़ी हुई , फैलेगा यह रोग।
हाथ मिलाना छोड़ दो, दूर रहो सब लोग।।
हाथ जोड़कर कीजिए, सबका ही सत्कार।
कोरोना करता नहीं ,इन पर कभी प्रहार ।।
साफ सफाई का रखो,, राधे हरदम ध्यान ।
हाथ मिलाने से करे ,कोरोना नुकसान ।।
हाथ सौंप दो ईश के, जीवन की पतवार।
आसानी से राधिका, हो जाओगे पार।।
डरो नहीं इस रोग से, हो जाओ तैयार।
रहो अकेले शान से, होगा इस पर वार ।।
घर पर ही सब बैठ कर, ले लो हरि का नाम ।
राधे ने सबको दिया, एक यही पैगाम ।।
घर में रहने से नहीं, लगता कोई पाप।
इससे तो घटता सदा, कोरोना का ताप ।।
करना है गर आपको, कोरोना को चूर।
कुछ दिन तो रहे लीजिए, अपनों से तुम दूर ।।
कोरोना के नाम से, आया कैसा रोग।
माता तुम भी ध्यान दो, डरते सारे लोग।।
गाँव घरों को आ रहे, हैं विदेश से लोग।
फिर क्यों अपने देश में ,रहे विदेशी रोग।।
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Wednesday, 17 June 2020
*मनहरण घनाक्षरी* , *आँसू* " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),
*आँसू*
आँसू ही बताते यहां मिलना बिछड़ना भी। बेटी की विदाई में ये पिता को सताते हैं । प्यार मनुहार में ये क्रोध अहंकार में ये। पलकों से गिर गिर भेद को छिपाते हैं । आँसू की अनोखी बात चाहे दिन हो या रात । सुख दुख घड़ियों को साथ ही बिताते हैं। हार जीत प्रेम प्रीत दुश्मन और मीत। बिना भेद किए ही ये आँख पे बिठाते हैं। |
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