Sunday, 27 October 2019

दोहे, कर सोलह श्रँगार " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )

 कर सोलह श्रँगार

 बिंदिया कुमकुम से सदाचमक रहा है भाल।
 नथनी झूले नाक मेंगले स्वर्ण की माल।।

 कुंडल सजते कान मेंहोठ लाल ललचाय।
 गोरी खुद को आज तोदेख देख मुस्काए।।

 तन पर यौवन है चढ़ामन उसक इठलाय।
 खुद में गोरी सिमटतीजब साजन मिल जाय।।

 कंगन हाथों के कहेपिया सुनो ये बात।
 खनक रही क्यों चूड़ियाँ , जब होती है रात ।।

हौले से जब पग रखूं , पायल करती शोर।
 तक धड़कन को थाम करआती तेरी ओर।।

 नख में लाली है सजीबिछिया रहती मौन 
आंचल लहरा के कहेमेरे प्रियतम कौन।।

 मात-पिता की लाडलीप्रियतम का हूं प्यार।
 महल पिया के जाऊंगीकर सोलह श्रँगार।।

Saturday, 26 October 2019

गजल, "जगमग करते दीपों" (राधा तिवारी " राधेगोपाल " )


जगमग करते दीप
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जगमग करते दीपों से हम अपना भवन सजाएंगे
चीनी लड़ियां छोड़ वहाँ  माटी के दीए जलाएंगे।।

 हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई के होते हैं पर्व बहुत।
 होली ईद और दीवाली मिलकर साथ मनाएंगे।।

 गांव शहर में दिखलाते हैं कलाकार कितने करतब।
 सर्कस ,मेला और नुमाइश जगह-जगह लगवाएंगे।।

 गंगा यमुना सरयू का तट लगता कितना मनभावन।
 मात- पिता को ले जाकर हम तीरथ यहाँ  कराएंगे।।

 मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों की भारत में भरमार है।

 रामराज्य लाकर के राधे पावन इसे बनाएंगे।।

दोहे, महामृत्युंजय मंत्र " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )

 महामृत्युंजय मंत्र 
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 परम शक्ति के सामनेसारी दुनिया मौन।
 ईश्वर के सम दूसरा ,नहीं जगत में कौन।।

 रहते शिव के साथ मेंनंदी भूत पिशाच।
 भस्म लगाकर अंग मेंकरते रहते नाच ।।

तीन नेत्र उनको मिलेचंदा शोभित भाल।
 महामृत्युंजय मंत्र सेटल जाता है काल।।

रहे नहीं अब तो कहींपहले जैसे गांव।
 पेड़ काटकर ढूंढतेवट पीपल की छांव ।।

प्रभु हमारे साथ हैइस पर कर विश्वास।
 जीवन की गति देखकरहोना नहीं उदास ।।

चिड़िया ची ची ची  करें ,आई नवल प्रभात।
 बीते दिन को भूलकर ,करो आज की बात ।।

जब सूरज आता यहाँ , जगता तब इंसान।
 तन मन को तब साफ करकरना थोड़ा दान।।

दोहे, आयुर्वेद विद्वान " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )



 आयुर्वेद विद्वान
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 ज्ञाता योगा वेद के, धनवंतरी है नाम।
 आयुर्वेद विद्वान थे, हुआ जगत में नाम।।

 रोगी काया को सदा, मानो यहाँ गरीब।
 धन दौलत गर पास हो, लगते सभी रकीब।।

 धन हरदम ही जानिए, अपना स्वस्थ शरीर।
 धन दौलत तो बाद में, बदलेगी तकदीर।।

 साधु संतों ने कहा, योग करो नित् प्रात।
 काम सभी करते रहो,हंस करके दिन रात।।

 योग यज्ञ को लो बना, दिनचर्या का अंग।
 तुमको जीवन में नहीं, रोग करेगा तंग।।

दोहे, जीवन जीने की कला " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


जीवन जीने की कला

जुल्म किसी पर मत करो,करना मत फरियाद।
 शुभ कर्मों से ही सभी, जग में रहते याद।।

 पानी की हर बूंद से, होते हैं सब काज।
  जल संकट गहरा रहा सारे जग में आज।।

 मानव जीवन में नहीं, मिलता है आराम।
 साथ दिवस सप्ताह में, सब करते हैं काम।।

 जीवन जीने की कला, होती जिसके पास।
 वह नर जीवन में कभी, होता नहीं उदास।।

 पेड़ों से पत्ते गिरे, गिरी सूख कर शाख।
 लगी आग तो रह गई, देखो केवल राख।।