Monday, 5 November 2018

दोहे, "वृक्षों से मिलती हमें, ठंडी ठंडी छांव" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


वृक्षों से मिलती हमेंठंडी ठंडी छांव
 साफ सफाई का यहाँ , बच्चों रखना ध्यान 
स्वच्छ अगर परिवेश हो ,स्वस्थ रहे को जान।।

 वर्षा के जल का करोजीवन में उपयोग 
गड्ढों में गर जल रहेपैदा होते रोग।।

 थोड़े से बच्चे करें ,उन्नति में सहयोग।
 कागज गत्तों से करेंअपने यहाँ प्रयोग ।।

अस्पताल दिखता यहाँ , सफल है नगरा गांव।
 हरे भरे परिवेश कीमिली हमको छावं।।

 जल से सींचो  पौध कोकर लो तुम व्यायाम 
पढ़ने के संग खेल का ,है अपना आयाम ।।

वृक्षों से मिलती हमेंठंडी ठंडी छांव।
 मरहम यही लगा रहेजब घायल हो पाँव ।।

 पेड़ कभी ना काटनामत लेना तुम दाम 
वरना तो जल जाएगातेरा कोमल चाम।।

 जल ही तो अनमोल है ,जल में सबकी जान 
आते हैं जल के बिनाजीवन में व्यवधान।।

 जीवन दाता पेड़ हैकरते हैं उपकार।
 पेड़ मनुज को दे रहे ,कुदरत का उपहार ।।

साफ सफाई में  करोसब अपना सहयोग 
हरती सब की स्वच्छताफैल रहे जो रोग।।



Sunday, 4 November 2018

भारत देश ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )




भारत देश
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भारत
 देश कर रहा है अपना ही विकास अब 
दीप अपने माटी के ही कर रहे प्रकाश अब।।
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 लेने  रहे हैं सब सूर्य से है रोशनी।
 चांद से भी मांगते हैं लोग शीतल चांदनी ।।
टकराएगा जो देश से उसका हो विनाश अब।
 दीप अपने माटी के ही कर रहे प्रकाश अब ।।

चल रहे हैं आज वीर देखो कितनी शान से।
 उठ रहा हमारा शीश आज स्वाभिमान से।।
 जल थल नभ में हो रहा हुलास (प्रसन्नता )अब 


दीप अपने माटी के ही कर रहे प्रकाश अब।।

Saturday, 3 November 2018

दोहे " बच्चों को अच्छे लगे, चटकीले ही रंग" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


दोहे "
 बच्चों को अच्छे लगे, चटकीले ही रंग"
 हाल कभी पूछा नहीं, जब थी तन मे स्वास।
 स्वास निकलते ही सभी, देखो आए पास।।

 चिंता में जलते सभी, अक्सर दिन और रात ।
नहीं मौत के सामने ,चलती यहाँ बिसात।।

 सोच समझ कर ही सदा, बोलो मुख से बोल ।
वाणी पर संयम रखो ,वाणी है अनमोल।।

 सूती साटन रेशमी, कपड़ों की है किस्म।
 मनचाहे परिधान से, ढक लो अपना जिस्म।।

 बच्चों को अच्छे लगे, चटकीले ही रंग।
 सबकी अपनी पसंद के, अलग अलग है ढंग।।

 तन  में सबके सोहते, रंगीले परिधान ।
अच्छे कपड़ों से रहे, दुनिया में सम्मान ।।

व्यवहारिक बनना यहाँ , करना सबका मान।
 उतना ही तुमको मिले, जितना दोगे दान।।

Friday, 2 November 2018

दोहे " मात-पिता गुरुदेव को, जो करते हैं प्यार" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


 दोहे "
 मात-पिता गुरुदेव को, जो करते हैं प्यार"
 मेरे मित्रों ने किया, है मुझ पर अहसान।
 सुख दुख में मुझको दिया, सदा यहाँ  सम्मान।।

 सुंदर वह होता नहीं, जिसका सुंदर अंग।
 कभी नहीं रब देखता, काला गोरा रंग ।।

अहंकार से हो रहे ,अपनों से हम दूर ।
अहंकार को छोड़ दो, मत होना मगरूर।।

 लिखते हैं हम तब वही, जब आते उद्गार।
 लिखने से पहले करें, मन में सदा विचार ।।

करती दिल से प्रार्थना, राधा कर को जोड़।
 गुरुवर मेरे साथ को ,कभी ना देना छोड़।।

  मात-पिता गुरुदेव को, जो करते हैं प्यार।
 हो जाते हैं वह सदा, भवसागर से पार।।


Thursday, 1 November 2018

दिख रही ऊंची पहाड़ी दूर तक ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


 दिख रही ऊंची पहाड़ी दूर तक
 दिख रही ऊंची पहाड़ी दूर तक
 दिख रहे जंगल  झाड़ी दूर तक
 पेड़ पौधे तो धरा की शान है
पर चली इन में कुल्हाड़ी दूर तक
 कितने ही परिधान में सिमटी है नार
 पर पसंद आती है साड़ी दूर तक
 घूमने सब जा रहे बाजार को
 रास आती खेती-बाड़ी दूर तक
 हिंदू मुस्लिम सिख इसाई है यहाँ
 पर नजर आते पहाड़ी दूर तक
 क्रोध माया मोह से सब हैं भरे
 प्यार से दुनिया पिछाड़ी दूर तक
 लिख रहे हैं गीत गजलें सब यहाँ


 राधे जाती है अघाड़ी दूर तक