समंदर का किनारा
मैं समंदर का किनारा देखती हूँ
जो नहीं करता है वो इशारा देखती हूँ
छोड़कर मुझको गए थे तुम जिधर
मैं वहीं मुड़कर दुबारा देखती हूँ
खोलकरके मैं झरोखा चांद को हूँ देखती
चांद के संग तो गगन में मैं सितारा देखती हूँ
ख्वाब मैं तो रोज ही यू चले आते हो तुम
नींद मेरी नैन मेरे क्यों ख्याब तेरा देखती हूँ
राधे को विश्वास है अपने प्रभु पर
आ रहा जो कल हमारा देखती हूँ
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बेहतरीन सृजन आदरणीया
ReplyDeleteसादर