अपना पथ सुलझाती हैं
गिरकर उठना उठकर गिरना चींटी हमें सिखाती है।
नन्ही मकड़ी देखो हमको बुनना जाल सिखाती है।।
मछली जल के भीतर रहती फिर भी कितनी प्यासी है।
नदिया सागर में भी रहकर प्यास नहीं बुझ पाती है ।।
जलधारा की राह कठिन है फिर भी बहती रहती है।
नदियाँ पर्वत से चलकर के अपना पथ सुलझाती है।।
खुशियां मन में भरी हुई है हंसते दिखते सबके मन।
राधे देख जगत की हालत फूली नहीं समाती है।।
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