दोहे, (सूरज फिर से झाँकता) दाँया बाँया देखकर, सड़क कीजिए पार । रहो सुरक्षित आप तब ,खुशियाँ मिले हजार।। वाहन लेकर के चलो, कभी नहीं तुम तेज। हेलमेट लेने से नहीं ,करना कभी गुरेज सूरज फिर से झाँकता, ले बादल की ओट। मन में उसके है नही , थोडा सा भी खोट।। रघुवर जैसा जगत में, कोई नहीं है मित्र। उनका तो दिखता सदा, युगो तक चित चरित्र।। मेघ गर्जना कर रहे, है वीरों के बाण । न्योछावर अब हो रहे, देखो कितने प्राण।। युद्ध भूमि को देखकर, करो नहीं तुम शोक। इस क्षण को तो कभी, कोई सका ना रोक।। रावण ने हरदम किया, छल बल से ही काम। अभिमानी में इसीलिए, होता उसका नाम।। मंडराता सब पर सदा, युद्ध भूमि में काल। दुश्मन तो हरदम चले, नई-नई सी चाल।। होता है जब सूर्यास्त, बजता है तब शंख। युद्ध भूमि में अब नहीं, हिल सकता है पंख।। युद्ध क्षेत्र में तो सभी, होते हैं रणधीर। कोई बचा कोई मरा ,पर दोनों है वीर।। क्षमा दया से मिल रहा,सबको ही सम्मान। क्रोध घृणा तो कर रहा, सभी जगह अपमान।। रावण का भी तो नहीं, रहा यहां अभिमान। अंत समय उसका किया, सबने ही अपमान।। दंभ घमंडी का हुआ, देखो चकना चूर। शरण प्रभु की आ गया, हो करके मजबूर।। युद्ध भूमि में हो रही, तीरों की बरसात। तीरों से ही कर रहे, देखो सब ही बात।। आज विभीषण खोलता, देखो सब के भेद। जिस थाली में खा रहा, उसमें करता छेद।। लालच अच्छा है नहीं, कहते वेद पुराण । लालच के ही फेर में, जाते कितने प्राण।। जनक नंदिनी ने लिया, तिनके का ही ओट। गर्भ घमंडी का नहीं, पहुँचा पाया चोट।। भाई के स्पर्श को ,समझ रहे हैं राम । लक्ष्मण सेवक बन करे, उनके सारे काम।। कांड कभी होता नहीं, लंका का हे राम। लक्ष्मण ऐसा बोलकर, लेते हरि का नाम।। हरी हृदय में बस रहे , डरो नहीं फिर आप । ईश्वर ही हरते सदा, सबके ही संताप।। डरो नहीं तुम है मनुज, देख समय की बात । सुबह सुहानी आएगी, छट कर काली रात।। |
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