ताप सूरज का
ताप सूरज का धरा को खा रहा
दुख सभी का है दिलों पर छा रहा
पीर हर कर बांट लो खुशियांँ यहाँ
दुख का बादल पास सबके आ रहा
प्यार से इंसान अब रहता नहीं
जानवर पर भी सितम वो ढा रहा
चल रहा था जो अभी तक शान से
चार कांधों पर अभी वो जा रहा
जन्म लेता है शिशु के रूप में
अंत भी वह साथ अपने ला रहा
श्रम करें इंसान इतना इस जहांँ में
पर कहाँ आराम फिर भी पा रहा
जी रही राधे यहांँ अब गर्दिशों में
किंतु फिर भी ये जगत है भा रहा
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