खेतों में से अन्न को, रहा किसान समेट।
धरती का भगवान तो, भरता सबका पेट।।
घर की रखवाली करे, बनकर टॉमी शेर।
चोरों की पहचान में, नहीं
लगाता देर।।
पाल रहा सबका उदर, निर्धन
श्रमिक किसान।
पर उसके सन्ताप का, नहीं हमें
अनुमान।।
शरद ऋतु की रात है, घास फूस का धाम।
बिना रजाई के नही, चलता है अब काम।।
सोच-सोच कर रो रहा, एक गरीब किसान।
कपड़े तन पर हैं नहीं, आफत में है जान!!
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Sunday, 1 April 2018
दोहे "एक गरीब किसान" (राधा तिवारी)
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