Showing posts with label खिलता गुलाब हो. Show all posts
Showing posts with label खिलता गुलाब हो. Show all posts

Thursday, 2 November 2017

ग़ज़ल "खिलता गुलाब हो" (राधा तिवारी)

प्रणय की तस्बीर तुम खिलता गुलाब हो
जो सबको बाँटे रौशनी वो आफताब हो

आता है दबे पाँव ही जो ख्वाब में सदा
शीतल सी चाँदनी तुम्हीं माहताब हो

आँखों में रात ही कटे, बातों में दिन कटे
जो आके नहीं जा सके तुम वो शबाब हो

जब हाथ में हो हाथ तो, पतझड़ बसन्त है
जो बिन पिये ही दे नशा, तुम वो शराब हो

राधे को घर में बैठे ही गोपाल मिल गये
दुनिया के हर सवाल का, खुद ही जवाब हो