Friday 10 November 2017

कविता "मां मैं तेरा बछड़ा हूँ" (राधा तिवारी)

भूखा हूं मैं मेरी मैया ,
मुझको भी कुछ खिलवादो।
इंसानों से कहकर मैया,
मुझको भी दूद्धू पिलवादो ।।

मां मैं तेरा बछड़ा हूं ,
दूध पे मेरा हक है ।
दूध यह सारा ले लेते हैं,
मुझको इन पर शक है।।

बेचा करते दूध दही,
पनीर मिष्ठान बनाते।
पर मेरे हिस्से का दुदु,
मुझको नहीं पिलाते।।

घास हरा मां तुमको देते,
और मुझे सूखा चारा।
खा लेता हूं चुपचाप मां,
मैं इतना बेचारा।।

मुंह दुखता है डंठल खाकर,
गले पर पड़ते छाले।
मेरे हिस्से का दूध छीन कर,
इनने अपने बच्चे पाले।।

जब बड़ा हो जाऊंगा,
मैं खेत में काम करूंगा।
हल पर लद कर,
माँ तेरा नाम करुंगा।।

अनाज बहुत होगा वहां,
पर हम को नहीं मिलेगा।
तू ही बता मां ऐसे इंसान को,
कैसे पुण्य मिलेगा।।

No comments:

Post a Comment